Sunday, December 20, 2009

जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना



जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना,
जुदा होकर दिल जिसे भूल जाये मेरा, मुझे उस कसम से क्या करना.

तेरी यादें ही मेरी अनमोल दौलत, चाहे आँसुओ का ये ठिकाना हो,
जमा किया खुशियों का खजाना, अब मुझे और रकम से क्या करना.

आंसू बहते नहीं, शायद आँखों से इनका नामों-ओ-निशा मिट गया,
ज़माने वालों दो धोखा दो दर्द, अब मुझे और सितम से क्या करना.

कभी सपनों में मिलू, तो उसके यहाँ होने का धोखा होता है मुझे,
ए खुदा हो सके तो तू भी सता ले, अब मुझे और बहम से क्या करना.

जाने क्यों अब जीने की तम्मना मर गयी है मेरी, पता नहीं दोस्तों,
बेआबरू हुआ इस महफ़िल में, अब मुझे और शरम से क्या करना.

ईश्क का अहसास किया हमने, ईश्क में खुद को बर्बाद किया हमने,
जलने वाला दे गया बहुत यादें, मुझे इक और सनम से क्या करना.

Sunday, December 06, 2009

हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती


हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती,
मेरी हर रात तेरे ही नाम का आलाप कर ढलती.

कहीं और नहीं मिलता सुकून तेरे चेहरे के सिवा,
ईश्क की आग मेरे दिल में धीरे-धीरे सुलगती.

क्या बयां करू मैं अहसासों की दास्ता-ए-कहानी,
हर बात में ज़िक्र तेरा एक ही आवाज़ निकलती.

तेरी अदा सबसे जुदा लगती है जाने क्यों मुझे,
मेरे मन की हर सोच तेरे ही दीदार को मचलती.

आँखों में तेरा ही चेहरा दिल में तेरी ही है यादें,
मेरे जिगर में एक हसी तस्वीर तेरी ही सवरती.

किस मोड़ पर जाने जिंदगानी गुज़र रही मेरी,
हर रात उसके ही ख्यालों के साथ अब निकलती.

Saturday, December 05, 2009

मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना


मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना,
फिर आज जल गया ईश्क की आग में एक दीवाना.

ए मालिक मेरे तुने क्या कहानी लिख दी मेरी ये,
जिसे मैं हर गजल में बोलू बना दिया ऐसा अफसाना.

उसके ख्यालों की बातें करने लगा हूँ अब तो रोज़,
नहीं बची कोई नज़्म और चाहूँ जिसे अब गुनगुनाना.

लगने लगा खुद को खुद से दूर कर रहा हू जैसे मैं,
वक्त ए दौर देखो हो गया अपने दोस्तों से भी बेगाना.

मेरी नफस में उसके ही नाम का बसेरा है अब तो,
जाने क्यों चाहू उसकी याद में खुद को अब जलाना.

कब सहर हुयी जाने कब गुजरती हुयी सब बीत गयी,
नहीं याद कुछ देखो मेरे नशे को बन गया मैं परवाना.

ए मालिक सदा में तेरी ही बंदगी के गीत रहे है मेरे,
यकीं तुझ पर मंजिल को मेरी बस तू फूलों से सजाना.

मेरी ख्यालो में मत खोना हसेंगे तुझ पर ज़माने वाले


मेरी ख्यालो में मत खोना हसेंगे तुझ पर ज़माने वाले,
आग जो लग रही नहीं मिलेंगे कहीं उसे बुझाने वाले.

कहते है ईश्क किया नहीं जाता ये तो बस हो जाता है,
नज़रे सब बयां कर गयी तुझे क्या पता ए छुपाने वाले.

लोग कहते है तू कुछ बदली-बदली रहती है आजकल,
नहीं पता क्या होगा तेरा मुझे आँखों में बसाने वाले.

अब तुझे होने लगा है असर ईश्क के नशे का शायद,
मत सोच इतना मेरे ही ख्वाबों को मन में सजाने वाले.

कभी किसी की नजर ना लगे तेरी भोली सूरत को,
हर मोड़ पर बैठे है घाव देकर दिल को दुखाने वाले.

मेरे सपनों की कीमत को कभी कम मत समझना,
बहुत मिलेंगे तुझे तेरे ईश्क की चाह लेकर आने वाले.

तुझे नहीं पता तेरा नया नया आगाजें ए ईश्क है ये,
सांसे मागेंगी केवल मेरा साथ मुझे सताकर जाने वाले.

Friday, December 04, 2009

एक तेरा ही चेहरा जो छाया है मेरे ख्वाबों में


एक तेरा ही चेहरा जो छाया है मेरे ख्वाबों में,
नज़र आये तू ही तू मुझे अब मेरी किताबों में.

ज़माने के दौर बदले यारों मेरा भी वक्त बदला,
तेरा ही दीदार ईश्क के मैखाने की शराबों में.

बाते करू अपने मालिक से अब तो तेरी ही,
तेरे ही नाम का इज़हार मेरे सब जवाबों में.

ज़रा बता दे मुझे क्या देखू क्या ना देखू,
तू ही तू नज़र आये इस बहार के सबाबो में.

कर दिया गुनाह हम भी ईश्क के मरीज़ बने,
करने लगा अपनी गिनती मै भी अब खराबों में.

Thursday, December 03, 2009

क्या बताये खुदा ने मुझे कैसा ईनाम दिया है



क्या बताये खुदा ने मुझे कैसा ईनाम दिया है,
तुमसे मिला कर पूरा जन्नत का अरमान किया है.

तस्सवुर की गिरानी तस्वीर थी जो दिल में,
खुदा ने उसको थमा खुशियों को अंजाम दिया है.

कैसा दौर ए वक्त आ गया मैं बहकने लगा हूँ,
उसके ईश्क पे खुद को फ़ना हर शाम किया है.

उसके लबों से निकली दिल को छू गयी हर सदा,
क्या बताये उसने दिल को कैसा आराम दिया है.

बरसने लगे बादल पर नहीं मौसम सावन का,
दिल की लगी ने आज फिर काम तमाम किया है.

अदा क्या बया करू जन्नत की सहजादी वो,
उसकी फिजा को देख दिलरुबा उसे नाम दिया है.

Wednesday, December 02, 2009

ज़माना कहता है ईश्क ना कर ये तो एक खता है


ज़माना कहता है ईश्क ना कर ये तो एक खता है,
इसका जो दर्द है वो जहा की महंगी एक सजा है.

पर क्या बताऊ एक नशा सा चढ़ा आपके साथ का,
मेरी प्यासी रूह ने इसी में पाया जन्नत सा मज़ा है.

मेरी हर बात में तेरे ही नाम की खुश्बू समा गयी ,
कौन दूसरा मेरे दिल के करीब अब तेरे सिवा है.

तेरी ही वफ़ा की उम्मीद इस काफ़िर के दिल में,
मेरे जीने की ए हमदम अब तू ही तो एक दवा है.

कितनी दफा मैं मरा मुझे ना इसका पता लगा,
तेरे ही ईश्क के किस्से अब कुछ ऐसी मेरी अदा है.

मेरी रूह में जो बस गया वो साया तेरी ही सूरत का,
नहीं लगता अब मुझे खफा मुझ से मेरा खुदा है.

तेरी दुआ का है असर चेहरे पे जो हँसी झलक रही,
हो जाऊ फ़ना अपनी चाहत पे यही आखिरी रजा है.

इक- इक लम्हें को सितमगर के ख्यालों में गुज़ारा था


इक- इक लम्हें को सितमगर के ख्यालों में गुज़ारा था,
ईश्क के तिलिस्म में क्या बताये कैसा हाल हमारा था.

उसके ख्वाबों की कीमत थी जिंदगी से भी ज्यादा मेरी,
उसकी यादों का अक्स ही मेरी नफस का एक सहारा था.

दूर कभी हो जाती नजरों से तो तड़पती थी रूह मेरी,
मुझे उसकी हिज़र का नहीं कभी एक पल भी गवारा था.

सामने जब होती तो नहीं बंद होती थी कभी पलके मेरी,
उसकी सूरत से सजा-सजा मेरे अरमानों का नज़ारा था.

एक रोज़ हमारी बात कुछ बिगड़ी तो रूठ गयी वो मुझसे,
मेरे दिल ने रो-रो कर उसे मनाने फिर खुदा को पुकारा था.

मैंने कहा कभी बिछड़े यार को आईने के सामने बैठने दिया,
मेरी नजरों की रोशनी ने उसकी भोली सूरत को सँवारा था.

आज कही तू बैठी अगर सुन पा रही हो आवाज़ मेरी तो,
रो-रो सदा ए दुआ में निकला था जो नाम वो तुम्हारा था.

Tuesday, December 01, 2009

कहा मैंने कभी मौजे ए महफ़िल को सजाया है


इस शाम की तन्हाई का ये जो आलम छाया है,
हँसी इक तवक्को बनी आँसुओ से इसे सजाया है.

हर मजालिस मेरी सुनी बेकार हर इल्फात गया,
गैरो की क्या बात करे हमे अपनों ने सताया है.

जब कभी शिकवो के मज़मून दिमाग में आये,
बेवफा यादों को मैंने रो रो कर फिर जलाया है.

जब कभी इस ज़माने ने पुराने जख्म छेड़े तो,
हमने साकी को बुला फिर खुद को बहलाया है.

किस्मत को कोसू या खुद को कसूरवार कहूँ,
सोज़ ने मुझे बेरहम दिल हो कर सताया है.

इस वक्त और मेरे दरमियान काफी दूरी है,
कहा मैंने कभी मौजे ए महफ़िल को सजाया है.

कोई बता दे कैसे चेहरे की असलियत को छुपाते हैं



कोई बता दे कैसे चेहरे की असलियत को छुपाते हैं,
ज़माने वाले मेरे घावों को बार-बार छेड़ दुखाते हैं.

सुनने वालो मेरी लाचारी का अहसास समझो जरा,
अदावत का पता नहीं जाने क्यों लोग मुझे जलाते हैं.

ठोकरे इतनी खाई हैं की दिल में एक डर समाया है,
हम हर राह पर अब फूलों से भी खुद को बचाते हैं.

नहीं देखना अब मुझे सितारों से सजा गुलशिता भी,
इस दुनिया के हँसते हुये चेहरे जाने क्यों मुझे डराते है.

अपना तो एक ये गम ही सच्चा रहबर साबित हुआ,
हम इसी में अपनी सल्तनत के सुनहरे सपने सजाते हैं.

दर्द ही केवल आज तक मुझ से एक नगमा बना,
हम इसी को अक्सर ख्वाबों-ख्याली में गुनगुनाते हैं.

ये ख़ुशी जिसे इस ज़माने वाले यहाँ वहा ढूढ़ते,
हम इसी को अपने रास्ते से चुन चुन कर हटाते हैं.

मेरे बुरे वक्त के उस दौर में सदा रहा है जो मेरे साथ,
हम उन्ही खून के कतरों से इस बयाबान को भिगाते हैं.

तू कह दे गर तो हम हर साख पर तेरा नाम लिख आयेंगे


तू कह दे गर तो हम हर साख पर तेरा नाम लिख आयेंगे,
होता है ईश्क क्या हम दुनिया को इसका मतलब समझायेंगे.

ज़रूरत नहीं कोई यादगार बनाने की मुझे ए हमसफ़र,
याद करेगा ये ज़माना कुछ ऐसे जावेदा निशा छोड़ जायेंगे.

मेरे खून का कतरा-कतरा बह जायेगा तेरी ही तमन्ना में,
मर के भी जो न मरे हम रिश्तों की वो किताब लिख जायेंगे.

अपनी हर सदा में तेरी सरफरोशी का ज़ज्बा उतार दूंगा,
तेरी आरजू को हासिल कर मोहब्बत के गीत रोज़ गायेंगे.

क्या ज़रूरत फूलों की क्या ज़रूरत चाँद सितारों की हमे,
इस जहा को ईश्क की रूमानियत के अहसासों से सजायेंगे.

इस सफ़र में काँटों और ठोकरों का साया है तो क्या हुआ,
इस दर्द और सिकन को हम प्यार के ज़ज्बे से रूबरू करायेंगे.

उन दिनों जब तेरी मोहब्बत का तलबगार हुआ था



उन दिनों जब तेरी मोहब्बत का तलबगार हुआ था,
मै चाहतों के हसीन सिलसिलों से दो चार हुआ था.

मेरी जुबा पर उन दिनों बस एक नाम चढ़ा रहता,
दिल में मदहोशी का इक जूनून इख़्तियार हुआ था.

क्या बताये वक्त ए फ़साना उन बीते दिनों का दोस्तों,
मेरा दिल रातों को तड़पते हुये कैसे बेकरार हुआ था.

क्या कमाया क्या गवाया ये तो नहीं मालूम चला,
नजरों से मोहब्बत के शूलों का इक कारोबार हुआ था.

कहते है ज़माने वाले एक बर्बाद शायर हू मै ईश्क में,
ये दिल उसकी चाहत के आगोश में गिरिफ्तार हुआ था.

बया करू तो अहसासों की ये एक लम्बी कहानी है ,
बहारों से खिला-खिला हसरतों का गुलज़ार हुआ था,

बैठा हू तेरी नज़र के सामने तू पैमाने को भरता जा,
क्या बताये उस दौर में मुझे ए साकी प्यार हुआ था.

Sunday, November 29, 2009

ईश्क का जो मैंने तुमसे मतलब पूछ लिया मेरे हुजूर


ईश्क का जो मैंने तुमसे मतलब पूछ लिया मेरे हुजूर,
कर दी क्या कोई गुस्ताखी जो हो गया इतना गुरुर.

ख्वाब दिल्लगी के अब आते मुझे हर शामो-सहर,
बेखुदी और तड़पते दिल का ईलाज बताईयेगा ज़रूर.

आँखे खुली हो या हो बंद इनके कोई ना मायने रहे,
अंग-अंग पे जो है सवार वो है आपकी चाहत का सुरूर.

बता तो दो इन नजरो में क्या ईश्क के तीर छिपे है,
जो हो गया दिल अपनी सल्तनत हारने को मजबूर.

अब खता हो गयी तो लेनदेन की शुरुआत हो जाये,
रूह के अल्फास बनो तुम यही इस सौदे का दस्तूर.

लैला मजनू के ईश्क के किस्से आपने सुने होंगे,
भर दो अपनी हामी हम भी ज़रा हो जाये मशहूर.

जुस्तजू नहीं ज़न्नत की शहीद ए वफ़ा नाम है


जुस्तजू नहीं ज़न्नत की शहीद ए वफ़ा नाम है,
अपने दिल के ज़ज्बातों की नुमाइंदगी ही काम है.

कौन कम्बखत तलाशता है दो पल का चैन यहाँ,
मुझे तो रोज़ आवारगी में ही सच्चा आराम है.

गुज़ारिशे थी मन की बहुत किसी ज़माने में,
बिका ख्वाहिशो के दौरान नहीं मिला दाम है.

ज़ह्न्नुम कैसा होता है कोई मुझ से पूछे कभी,
मेरे लिए तो इसका अहसास जैसे रोज़ आम है.

मेरे गुज़रे सफ़र के निशा मत देख ए साकी,
ईश्क के क़त्ल का मुझ पर इक ईल्ज़ाम है.

जो जी गया ज़माने में तोड़ हर गम की दिवार,
उसको झुक कर इस दिल की नज़र का सलाम है.

हमारी महफ़िल में आये हों तो मेरा आदाब है


हमारी महफ़िल में आये हों तो मेरा आदाब है,
ना नजरों से बात करो नहीं इनका जवाब है.

महफ़िल की हवा है कुछ बदल सी गयी,
लगता छा गया आपके हुस्न का सबाब है.

ये अदाये ये हँसी, कैसे दिलकश अंदाज़ है,
लगे ऐसा जैसे नजदीक चमन का माहताब है.

कैसे बया करू जज्बात सामने जो आप है,
परी हों जैसे रूबरू बदले से वक्त के हिसाब है.

हर साख है सोख और हर सोखी में आप है,
छुप के मै जिसे पी रहा तेरे नजरों की शराब है.

Saturday, November 28, 2009

तन्हाई है तो क्या हुआ शहर में मैखाने बहुत है


तन्हाई है तो क्या हुआ शहर में मैखाने बहुत है,
गम को ज़रा भूला लू जिनमे ऐसे पैमाने बहुत है.

अपने प्यार का बखान करे हर मुलाकात में,
इस शहर में ऐसे बहलाने वाले दीवाने बहुत है.

कभी खत्म नहीं होती अलफासो की रवानगी,
इस शख्स के पास बयानगी के फ़साने बहुत है.

अभी तो सूरज के चढ़ने का सफ़र शुरू हुआ है,
दुनिया में अभी महफिलों के रंग सजाने बहुत है.

एक जमात है इस दिल में खुबसूरत नज्मों की,
ज़माने को ईश्क के नशे के किस्से सुनाने बहुत है.

बहुत सूखे पत्ते बिखरे है मेरे वीरान आशियाने में,
वक्त है कम दर्द के पुराने निशान जलाने बहुत है.

मैं जब से इस वक्त के दौर को समझने लगा हूँ


मैं जब से इस वक्त के दौर को समझने लगा हूँ,
हर गिला हर शिकवा से किनारा करने लगा हूँ.

दुनिया की लज्ज़त के किस्से धोखे है दोस्तों,
हर साख की असलियत के पास ठहरने लगा हूँ.

बेमुहाबा होना ही पड़ा इस गैरत की महफ़िल में,
मै खुद अपनी जलती आग में अब जलने लगा हूँ.

यहाँ गर्दिश ए दौर से डर कर दूर क्या भागना,
मै अपने सितम के गुबार के साथ गुजरने लगा हूँ.

दुनिया में दिलों में बसते है कितने लाखों अंदेशे,
मै अपने बहाये आँसुओ की नदी में बहने लगा हूँ.

कौन कहता है अपाहिज पार नहीं करते समुंदर,
मै इस सिकन के माहौल से अब उभरने लगा हूँ.

किसी पल के दरमिया बहाये थे खून के आँसू,
रहमत खुदा की उन्ही से आज सवरने लगा हूँ.

Friday, November 27, 2009

जिंदगी मेरी कदम दर कदम एक शिकस्त है



जिंदगी मेरी कदम दर कदम एक शिकस्त है,
मिलू दोबारा बहारों से बस यही मेरी हसरत है.

दुनिया कैसे जी लेती है यू बेआबरू होकर,
देख इनकी पत्थरदिल आदत मुझे हैरत है.

दिन का उजाला मेरे लिए तो एक अँधेरा है,
जो कभी बनी नही कुछ ऐसी मेरी किस्मत है.

कहा से सोचों महफिलों की मौज के सपने,
अपना तो हर ख्याल जैसे एक रुखसत है.

जो नहीं था मुक्कदर में मेरे वो ना मिला,
मुझे ए खुदा तुझसे ना कभी शिकायत है.

मिट नहीं सकते कुछ ऐसे निशा बन गए,
इस दिल की दास्तान ताउम्र सलामत है.

ये दर्द ही मेरा दिलनशी बन गया अब तो,
दवा ना मिली तो शायरों सी मेरे तबीयत है.

टूट पड़ा सोज़ का ऐसा कहर



ईश्क में मिले दर्द की दवा ढूढता रहता दरबदर,
कैसा बेरहम सा रोग दिया तुने मुझे ए हमसफर.

दुनिया क्या जाने मेरे आँसुओ में खून मिला है,
कहा छुपाऊ रुसवा चेहरे को बता दे मुझे रहगुज़र.

तू क्या जाने कत्लगाह सी मुझे दुनिया लगती,
तेरी यादों के अक्स लिए होती मेरी हर शामो-सहर.

मिले मुझे जहा सुकून की मंजिल का रास्ता,
ए खुदा कर रहम बना दे निशात की वो नहर.

तुम तो चल दिए हँस के, मुड़ कर भी ना देखा,
क्या बताये कैसे पी गये सितम का ये कड़वा ज़हर.

अब कहा से लाऊ रूठ चुकी खुशियों की वो बहार,
उम्मीद न थी जिसकी टूट पड़ा सोज़ का ऐसा कहर.

क्या करूँगा खुदाई का


न रहा शिकवा कभी किस्मत की बेवफाई का,
न ही कोई गिला मेरे रहबर की जुदाई का.

छोड़ गया साथ मेरा तो क्या हुआ,
आज भी महकता है चेहरा उसकी वफाई का.

मेरी रूह से उसका नाता सदियों पुराना,
भला कैसे होगा अहसास बोझिल तन्हाई का.

न मेरा कोई हमपेशा न कोई हमराज़,
क्या करूँगा लेकर उधार किसी की दुहाई का.

बस जब तक जिऊ उसकी यादों के साथ रहू,
नहीं वहशत कहने में क्या करूँगा खुदाई का.

Thursday, November 26, 2009

वक्त के आखिरी फ़साने तक तेरा इंतजार करूँगा



वक्त के आखिरी फ़साने तक तेरा इंतजार करूँगा,
हमारे बीच की दूरी के सिमटने का इंतजार करूँगा.

तेरे संग गुजरी यादों का सदा तलबगार रहूँगा,
जब आँख खुलेगी तेरी ही सूरत का निहार करूँगा.

एक-एक पल की कहानी कैद इस दिल में,
हर गुज़रे लम्हें में तेरे सपनों का दीदार करूँगा.

जब तेरा साया किस्मत से दिख जाये कही,
अपने सच्चे ईश्क के जज्बातों का इज़हार करूँगा.

मै तो एक आग का जलता बुझता दरिया हू,
कहा अपने ख्वाबों की हकीकत साकार करूँगा.

इस जिस्म में मेरी रूह का बसेरा है जब तक,
अपनी अधूरी मोहब्बत का सच्चा दिलदार रहूँगा.

आँखों में चेहरा लबो पे नाम छोड़ जाऊंगा उस दिन



मेरे उठते जनाजे का नज़ारा देख वो रोयेगा उस दिन,
मै छोड़ कर ये हँसती दुनिया चला जाऊंगा जिस दिन.

कैसे अपने बहते आंसुओ की बुँदे थाम लेगी वो,
कलम छूट जायेगी हमेशा के लिये हाथों से जिस दिन.

न गुज़ेगी ये आवाज़ उसके प्यार के गीतों से फिर,
मेरे नगमों की बयानगी खामोश हो जायेगी जिस दिन.

मेरी तो उम्र गुजर जायेगी यू नाउम्मीद शायर बन कर,
याद उसे आऊंगा कदमों के निशा मिट जायेंगे जिस दिन.

कौन यहाँ से न गया, मैंने भी जाना है एक दिन,
पर आँखों में चेहरा लबो पे नाम छोड़ जाऊंगा उस दिन.

Wednesday, November 25, 2009

हर शख्स को उसकी आरजू सा यहाँ प्यार नहीं मिलता


हर शख्स को उसकी आरजू सा यहाँ प्यार नहीं मिलता,
दिल को तलाश हो जिसकी वो करार नहीं मिलता.

कितने आबाद हुये, यहाँ न जाने कितने बर्बाद हुये,
पर हर किसी को उसकी हसरतों सा दीदार नहीं मिलता.

चाहते है सब आशियाने में हो जाये ईश्क की इशरत,
पर हर किसी को उसकी मोहब्बत का इज़हार नहीं मिलता.

अपनी अहद तो यहाँ हर कोई आशिक निभाता आया है,
खुदा से बढकर चाहे जिसे जाने क्यों वो दिलदार नहीं मिलता.

ऐतबार करो मेरा एक अज़ाब का ये बेरहम सा सफ़र है,
दुस्वार है मंजिल, यहाँ लुफ्त का इकरार नहीं मिलता.

मुझे जीस्त ओ जिल्लत का सामान मिला है


मुझे जीस्त ओ जिल्लत का सामान मिला है,
सितम और आंसुओ का जो दर्दभरा ईनाम मिला है.

एक-एक जुम्बिश पर दर्द की शमशीर लटकी है जैसे,
दुनिया कहती है मुझे मोहब्बत का गुमान मिला है.

एक बयाबान सी है ये मेरी तनहा और अकेली जिंदगी,
हर मोड़ पर हिज्र और रंजिश का सदा मक़ाम मिला है.

मेरे दिल से आहों की आवाज़ निकलती शब ओ शाम,
कहा बेवफा दुनिया में मुझे ईश्क का इंतजाम मिला है.

मेरी हर हर्फ़ ओ दुआ में एक फरियाद है खुदा से,
पर बदले में मुझे हर एक मंज़र यहाँ वीरान मिला है.

इक चैन ओ सुकून का मुझे पैगाम आया है



इक चैन ओ सुकून का मुझे पैगाम आया है,
जाने कितनी सदियों बाद मेरा अरमान आया है.

कज़ा के माफिक सरक रहा था मेरा हर कदम,
जैसे मेरा खुदा मेरी महफ़िल में सरेआम आया है.

कदमो की आहट दुवाओ की आवाज़ के मानिंद,
नशा सा छा गया मेरे दिल का जो मेहमान आया है.

कर दो सादिर के बेजार नहीं मुझसे अब बहारे,
बरसो से रूठा मेरा हमदम मेरा जहान आया है.

नहीं मतलब क्या होगी जिंदगानी अदम के बाद,
तलाश थी जिसकी खुशियों का वो इंतजाम आया है.

Saturday, November 21, 2009

तेरे शहर की हवा बेगानी लगी..



तेरे शहर की हवा मुझे कुछ बेगानी लगी,
यहाँ हर साख मुझे ईश्क से अनजानी लगी.

हर नज़र में है कशिश, हर रूह है प्यासी,
ऐसी यहाँ की तड़पती हर जवानी लगी.

हम तो टूटे दिल को लिए फिरते है गलियों में,
हर मोड़ पर इंतजार करती नयी कहानी लगी.

मेरी प्यास का आलम ये शहर क्या जाने,
ईश्क के है नए राही, ऐसी इनकी निशानी लगी.

तेरे ज़ख्म कही फिर न हो जाये हरे बदनसीब,
देख इस वक्त का फ़साना मुझे हैरानी लगी.

Friday, November 20, 2009

ओ मुसाफिर...


ओ ईश्क की राह चलने वाले मुसाफिर तू याद रखना,
हो सके तो तन्हाईयो की दवा भी अपने साथ रखना.

मै ये नहीं कहता दिल में मोहब्बत की आश न रखना,
बस हो सके तो इस सफ़र की ठोकरों से इत्तेफाक रखना.

आँखो में कर ज़मा, तू आसूओ की बरसात रखना,
जो अकेलेपन के साथ बटे, तू जिंदा वो अहसास रखना.

दिल के कब्रगाह की ज़मी, तू जरा अपने आसपास रखना,
ओ मुसाफिर टूट कर भी जो न टूटे कुछ ऐसे तू ख्यालात रखना.

मिल जाये जन्नत तो उसमे भी तू तन्हा होने का अरमान रखना,
अपनी अकेली रातों के लिए बेवफा कहानियो का सामान रखना.

लम्हा-लम्हा अकेले तू रोयेगा जहा, तैयार वो जहान रखना,
हो सके तो बुलंद तू, अपने सच्चे ईश्क के निशान रखना.

Tuesday, November 17, 2009

जब उस से मिला..


सपनों की महफिलों को उसने कुछ यू सजा दिया,
मेरी रूह को सकू मिला जन्नत सा मज़ा लिया.
हर ख्वाब में खुश्बू उसकी मुझे ऐसा महका दिया,
मेरे रोम-रोम को नजरों से जैसे उसने बहका दिया.  

आँखों से बात हुयी कुछ उसने मुझे बता दिया,
अकेला नहीं मुसाफिर तू दिल से ये जता दिया.
मदहोश मन उड़ता हवा में जैसे उसने नशा दिया,
मै याद रखू ताउम्र कुछ ऐसे उसने हँसा दिया.

तरन्नुम में लगन जगी ऐसा राग सुना दिया,
रोशन कर लौ प्रेम की खुद को नजरों में चढ़ा दिया.
ईश्क की आग दिखी नहीं पर उसमे मुझे जला दिया,
खुद को निहार सकू जिसमे वो दरिया मुझे थमा दिया.

बहारों ने दस्तक दी ये हमने अब मान लिया,
दुनिया में बचा है खुदा इसको भी अब जान लिया.
जब से उस आईने से फ़रिश्ते का दामन थाम लिया,
अपनी हर बीती बदकिस्मती का जैसे आज ईनाम लिया.

Monday, November 16, 2009

सनम बना लिया..



मोहब्बत को जिंदगी का सुरीला गीत बना दिया,
मैंने अपनी हर हार को जीत बना लिया.
हर अदा हर खता को मैंने संगीत बना लिया,
हर दर्द हर सजा को आज अपना मीत बना लिया.

काँटे हो गये हैरान उनको जो अपना अज़ीज़ बना लिया,
देखो मैंने अपनी दिल्लगी को अपना नसीब बना लिया.
जो थी मीलों दूर उस हँसी को करीब बुला लिया,
आखिर हर ज़ख्म हर दर्द को मैंने आज रकीब बना लिया.

टूट चुके ख्वाबों को समेटकर अपना कदम बना लिया,
राह की ठोकरों से दिल लगा उन्हें हमदम बना लिया.
जब से उस अनजाने साये को अपना सनम बना लिया,
हर सितम से मिलती है ख़ुशी कैसा ये वहम बना लिया.

मेरी तन्हाईयो ने अब नया एक गुलशन बना लिया,
फिर सावन को बुला खुशनुमा आगन बना लिया.
मैंने तो कब्र से निकल घूमी दुनिया ऐसा जनम बना लिया,
ए आँसू ए सिकन तुम्ही हो मेरे, तुम्हें अब अपना सनम बना लिया.

Thursday, November 12, 2009

मैंने इसी में सब कुछ पा लिया..



किसी की आँखों से बहते आँसुओ को थाम लिया,
मैंने उन्ही को अनमोल मोती मान लिया.
किसी की मौन छुपी भावनाओ को जान लिया,
मैंने उन्ही को अपना सच्चा साथी मान लिया.

किसी नन्ही जान के साथ तोतली जबान में गा लिया,
मैंने उसे ही अपने दिल का संगीत सुना लिया.
किसी गरीब को दिल से इज्ज़त का तोहफा थमा दिया,
मैंने इसी लेनदेन में अपने खुदा को पा लिया.

किसी नौजवान की आशाओ को और परवान चढ़ा दिया,
मैंने इसी में अपनी मंजिल के शिखर को पा लिया.
किसी शहीद की शहादत पर एक दीप जला लिया,
मैंने इसी में हर जनम का सुकून पा लिया.

किसी टूटे दिल को अपनी दोस्ती से मरहम लगा दिया,
मैंने इसी में अपने खोये इश्क का भरम मिटा लिया.
किसी भूखे को एक रात की रोटी का उपहार दिला दिया,
मैंने इसी में दुनिया का सबसे बड़ा पुरुस्कार हथिया लिया.

Tuesday, November 10, 2009

शायद किसी ने मुझे बुला लिया...


अपनी साँसों को उसकी साँस में उतार सकू,
उसके राहे-ए-गम से मै उसे पुकार सकू.
मुरझाये चेहरे को उसके मै निखार सकू,
गमों को मिटा हँसी को थोड़ा निहार सकू.

उनकी बातों से रुसवाई का अहसास किया,
उसने शायद बेवफा दुनिया पर विश्वास किया.
इश्क की राह के जख्मों ने उसे उदास किया,
कैसे कह दू मैंने भी बेवफाई का अहसास किया.

इश्क के आँसुओ को कहा किसने बहते देखा,
हँस दे दर्द में ऐसा किसको किसने सहते देखा.
हमने तो बहारों को भी एक दूसरे से कहते देखा,
हम नहीं जाती वहा जहा प्रेम लौ को जलते देखा.

उसके दर्द की कसक ने मेरी आँखों को रुला दिया,
बरसों बाद मेरे पत्थर दिल को पिघला दिया.
सुन उसकी दास्ता हमने भी अपना गम भूला लिया,
किस ने दी आवाज़, शायद फिर किसी ने मुझे बुला लिया.

Monday, November 09, 2009

बहुत आँसू तेरे बह गए..


रात अब बीत चुकी, आज फिर बहुत आँसू तेरे बह गये,
इस मतलबी दुनिया में, अब और कौन तेरे रह गये.
जब कभी तेरे आँसू गिरे, दर्द ओ गम हम सह गये,
आवाज़ तेरी जब भी उदास हुयी, खून के आँसू मेरे बह गये.

तेरी राहों में तुझे मिले काँटे, जख्म तेरे मुझ से कह गये,
शाम को थी तुम तन्हा, वीरानियों के सितम मुझ पे ढह गये.
जब कभी मैंने नगमे लिखे, पन्ने तेरी आहों से रंग गये,
उठा जब भी, कदम बढ़े, तेरे दर्द के साये मेरे संग गये.

माना राह में बेवफाई के घाव मिले, खामोश तुझे कर गये,
प्रीत की राह के ठोकर खाये, तन्हा मुसाफिर तुम रह गये.
सुन सको आवाज़ तो, मेरे हर लब्ज़ तुमसे कह गये,
क्या तुम्हारी गुजरी राहों के नग्मे ही, मेरे लिए अब रह गये.

तेरी सिसकियों की आह सुनी, क्या बताऊ कैसे हम सह गये,
ज़हर का था जैसे एक घूट मेरे लिए, तेरे जो आँसू बह गये.
पास था दरिया रहा मै प्यासा, फिर भी इसे हम सह गये,
मुक्कदर से मिलता इश्क ए दोस्त, कुछ ऐसा हवा के झोंके कह गये.

Friday, November 06, 2009

लेखनी से तुम वयक्त करो..



शब्दों से अभिव्यक्त करो,
तुम अपनी लेखनी से वयक्त करो.
किसी के अश्रु बूंदों का खारापन,
किसी की लाचारी का दर्द लिखो.

स्याही से उदघोष करो,
तुम अपनी कलम का विजयघोष करो.
किसी गरीब के नंगे तन,
किसी भूखे पेट की कहानी पर लिखो.

पंक्तियों से मस्तिष्क प्रभावित करो,
छन्दों से राष्ट्र भावना प्रचारित करो.
किसी शहीद की कुर्बान जवानी पर,
किसी देशभक्त की भूली निशानी पर लिखो.

वाक्यों से मानव कल्याण करो,
कविता से नव राष्ट्र का निर्माण करो.
फूट-पाथ पर गुजरी रातों की ठिठुरन,
भीख मांगते हाथो की कहानी लिखो.

शब्दों से अभिव्यक्त करो,
तुम अपनी लेखनी से वयक्त करो.
किसी के अश्रु बूंदों का खारापन,
किसी की लाचारी का दर्द लिखो.

Wednesday, November 04, 2009

तुम फिर से आओ..


मेरे ख्वाहिशों के आसमा में छायी धुंध की चादर फिर से हटाओ,
कब से हू प्यासा, आकर तुम फिर मेरी प्यास बुझाओ.
मेरे तपिश भरे दामन को सकू दे जाओ फिर से तुम काली घटाओ,
मेरे गम का ढेर बहुत बढ़ गया, आकर तुम जरा इन्हे बटाओ.

खुश्बुओ की हवा न चली बीते बरसो, बहा दो बयार गुलशन को महकाओ,
आगन सुनसान सुरिली साज़ न बजी, गीत गुनगुनाओ आशियाना चहकाओं.
भूला दिल ईश्क की रूमानियत, बहारो को खिलाओ मुझे फिर बहकाओ,
छुप गया सूरज मुक्कदर का, सितारों से तुम मेरी तन्हा रात चमकाओ.

नजरो की बेकरारी की आग बुझाओ, बस कुछ पल फिर मेरे साथ बिताओ,
फिर इस जिस्म में साँस डाल जाओ, अपनी अदाओ से मुझको सताओ.
वो सुने हुये पुराने नगमे फिर तुम गाओ, फिर से वो पुराना जावेदा प्यार जताओ,
मै हू बहुत अकेला, मुझे तुम मेरी मंजिल तक पहुचाओ.

Monday, November 02, 2009

वही मेरे साज बन गये..


टूटे सपनों के ख़यालात की नुमाइंदगी ही मेरे साज़ बन गये,
मेरे दिल के जख्मों के नुमाईश की अदा ही मेरे आज बन गये.
सूखी दरिया में बहता है खून मेरे शरीर का ये ही मेरे राज़ बन गये,
तन्हाई में आता है मुझे सुकून,अकेलेपन के किस्से ही मेरे ताज बन गये.

दुनिया की बेवफाई के चर्चे हो रहे महफिलों में अब तो ये ही मेरे अंदाज़ बन गये,
टूटे दिलों को जो दे कुछ राहत,लोग वो ही मेरे नये नज्मों की आवाज़ बन गये.
ज़माने भर से पुछू दर्द के रिहाई की चाबी कुछ ऐसे अ़ब मेरे मिजाज़ बन गये,
एक बार मर फिर शुरू की जिंदगी इसी दास्ता के किस्से मेरे आगाज बन गये.

ज़हर के प्याले का कड़वा घूट पिया था कभी,नशा उसका ही मेरे अहसास बन गये,
राह में मिले कांच के टुकड़े बने गहरे घाव,देखो आज वो ही मेरे लिबास बन गये.
एक बार किसी ने बोला तुम अ़ब नहीं हमारे,बाद उसके दिन मेरे कुछ उदास बन गये,
उसी अकेलेपन की सोहबत का असर,दिल के आंसू बह गये,वही मेरे साज़ बन गये.

Saturday, October 31, 2009

बदल रही दिशा..


सन्देश एक अपना, कान में कह गयी पवन,
स्वर थे मधुर, खिल गया मेरा चितवन.
बदल रहा समय, बदल रही है दिशा,
उग रहा सूरज, बीत रही अंधकार भरी निशा.

कुछ पग और चलो, नये लोगों से नित रोज़ मिलो,
आशाओ के दीप प्रज्वलित करो, बन जाओ ऐसा के सब के दर्द हरो.
बदल रहा रास्ता, बदल रहे है पल,
उज्जवल है भविष्य, है स्वागत को तैयार सुनहरा कल.

हर नम आँख को ख़ुशी मिलेगी, हर घर में हँसी खिलेगी,
इस धरा की किस्मत बदलेगी, वतन की हर राह में खुशहाली की बहार चलेगी.
बदल रहा मानव, बदल रही है घडियाँ,
तीव्र हो रही स्वाभिमान की ज्योति, जुड़ रही मेरे देश की टूटी कड़िया.

हर दर्द हर दुःख से होगी मुक्ति, हम प्राप्त करेंगे अपनी वास्तविक शक्ति,
हमारी आशाये बनेंगी सफलता की सूक्ति, जिंदा होगी फिर वो राख़ बन चुकी देशभक्ति.
बदल रही झूठी कहावत, बढ रही है हमारी महारत,
बन रही एक मजबूत ईमारत, बदल रहा हम सबका भारत.

ये फैले हुये गगन! तू भी देखना हो जा तैयार,
मेरे देश की आभा होगी तेरे से शानदार, अ़ब बह रही इसे मुंकिन करने वाली बयार.
क्योकि बदल रही किस्मत, हो गयी है युद्धभूमी तैयार,
मिटा देंगे हम हर कालिख को, हर किसी के मन में हो गया है परिवर्तन का जूनून सवार.

Friday, October 30, 2009

देखो मेरी कहानी बन गयी..


हर रात व्यर्थ के कल्पनाओ के संगम की कहानी बन गयी,
जिंदगी जैसे चंद लम्हों में ढह गयी, एक निशानी बन गयी.
इन कागज के टुकडों जैसी ना जाने क्यों जवानी बन गयी.
बात क्या हुयी जानू ना, दुनिया की चाहत मुझसे बेगानी बन गयी.

कांच के टुकडों में देखता तस्वीर अपनी, उम्मीद तो जैसे एक बईमानी बन गयी,
चाहू ना चाहू, हर बंधन हर रस्म को निभाना आज जैसे मनमानी बन गयी.
एक-एक दिन गुजरता लगता सफ़र सदियों का, सूरज का ढलना परेशानी बन गयी,
हँस रहा शख्स अंदर का मेरे, उसकी तो महफ़िल जैसे सुहानी बन गयी.

ये दर्द ये सिकन, इनकी सोहबत जैसे मेरी दीवानी बन गयी,
यहाँ हर मोड़ अकेला, हर राह खाली, फितरत कैसी ये इंसानी बन गयी.
मेरे लबों पर हँसी,दिल है सवाली, मंजिल बस मेरी मुहजबानी बन गयी,
बिन स्याही, बिन कागज, देखो ये कैसी मेरी आज कहानी बन गयी.

Thursday, October 29, 2009

उससे पूछना मेरी आखरी निशानी..


दिल के ज़ख्मों को किसी की नजरों का दीदार कराऊ ,
मै क्यों अपनी कहानी का चर्चा महफ़िल में सरेआम कराऊ.
मेरी रूह की प्यास है कितनी प्यासी और अनबुझी,
किसी को इसका तड़पता अहसास क्यों कराऊ.

मेरे दर्द का असर कितना मैंने किया बीते दौर में सहन,
क्यों अपने जिगर के दर्द के निशान खुलेआम दिखाऊ.
मेरे दर्द के असलियत के सबूत सबको वाकिफ कराऊ,
जो बीता है गुज़रे दौर में मेरे साथ वो किस्सा क्यों बताऊ.

एक परछाई को लगाया था गले, उसका रंग कैसे समझाऊ,
मै अपने गमो की टूटी सहनाई, कहा से लाऊ.
आज भी जिंदा है जो राज़ उनको कैसे दफनाऊ,
सुनना चाहते हो जो तुम दास्ता कहा से वो आवाज़ लाऊ.

इश्क के धोखे से रूबरू करा गयी मुझे,
उस से पूछो कहा मिलेगी बेवफा वो हसीं तुझे.
बेवफाई के आयतों से वाकिफ है वो बीती कहानी,
हो सके तो कोशिश करो पढने की मेरी आखरी निशानी.

हा तुम ही वो हो..



लुभावने ख्वाबों का दृश्य दिखाया, मन के एकांत बगीचे में मोहब्बत का फूल खिलाया,
हा तुम ही तो वो पथ प्रदर्शक हो, जिसने मुझे प्रेम का एक-एक अक्षर बताया.
मुझे प्रेम का गीत सिखाया, मेरे मुख पटल पर रौनक का खिला-खिला नूर मिलाया,
हा तुम ही तो वो मार्गदर्शक हो, जिसने मुझे मेरे जीवन का सही मकसद बताया.

कल्पनाओ के विस्तार का रहस्य सिखाया, ह्रदय को प्रीत के निर्मल नीर से नहलाया,
हा तुम ही तो वो शिल्पकार हो, जिसने एक-एक नश्वर ईट से मेरा वजूद बनाया.
मुझे अपनेपन का स्वरूप दिखाया, बेपनाह लगाव की माया का साक्षात्कार कराया,
हा तुम ही तो वो आध्यात्मिक शिक्षक हो, जिसने मुझे आत्मा की परम शक्ति का ज्ञान बताया.

दुनिया के एक-एक पहलू का सार समझाया, ईश्वर की आस्था के चमत्कार का दर्शन कराया,
हा तुम ही तो वो देवदूत हो, जिसने मुझे जीते जी स्वर्ग में होने का अहसास कराया.
मुझे ज्ञान प्राप्ति का साधन बताया, कर्म की शक्ति के अपरिहार्य गुण को मुझ में मिलाया,
हा तुम ही तो वो सुंदर अप्सरा हो, जिसने मुझे प्रेम के गीत लिखना सिखाया.

लुभावने ख्वाबों का दृश्य दिखाया, मन के एकांत बगीचे में मोहब्बत का फूल खिलाया,
हा तुम ही तो वो पथ प्रदर्शक हो, जिसने मुझे प्रेम का एक-एक अक्षर बताया.
मुझे प्रेम का गीत सिखाया, मेरे मुख पटल पर रौनक का खिला-खिला नूर मिलाया,
हा तुम ही तो वो मार्गदर्शक हो, जिसने मुझे मेरे जीवन का सही मकसद बताया.

Wednesday, October 28, 2009

तू क्यों है खामोश आज?


वो राह के पथिक! तू है क्यों खामोश आज?
बोलता नहीं कुछ क्या हुआ तेरे साथ?
झुकी-झुकी सी हैं तेरी नज़रे आज,
नहीं दिखता तेरा वो विश्वास तेरे साथ.

हा मै हू चुपचाप सा टूटा शीसा आज,
लगी है ठोकर छोड़ गया कोई मेरा साथ.
टूटा है मेरे बुने हुए सपनों का आशियाना आज,
छोड़ गया मुझे मेरा साया जो कल था मेरे साथ.

दोस्त ऐसी क्या हुयी अनहोनी आज?
तेरे आसुओ की प्रवाहित धारा तेरे नैनों के पास.
क्या हुयी बात जो उदासी है अब तेरे साथ?
क्या है कारण जो सुख गयी तेरे अरमानों की नदिया आज?

मै चला था प्रीत की वो अनजानी डगर,
पता ना था ये है एक धोखे का सफ़र.
डूब गयी दिल की कश्ती रोने लगी नज़र,
समझा जिसे अपना हमदम, उसी ने दे दिया ज़हर.

Tuesday, October 27, 2009

जो बिछड़ गए वो फिर ना मिले..


उम्र के एक पड़ाव पर वो गया है ठहर,
बीत गयी जिंदगी दे दिया जैसे ज़हर.
सपनो की दुनिया में बरसा है ऐसा कहर,
सुनसानी में बदल गया जीता-जागता शहर.

आहों की सिसकिया आती है हर पहर,
सब्र की आज टूट गयी उसकी नहर.
हर साख को बर्बाद कर रही दर्द की लहर,
तरस रहा ह्रदय किसी की तो हो मेहर.

कदमों के निशान अश्रुवो की वर्षा से धुले,
उसे हर राह में आखिर काँटे ही मिले.
रोज़ नए रास्ते जरुर उसने थे चले,
पर दिन सदैव उसके तन्हा ही ढले.

वफाओं के कहा किसी को मिले है सिले,
क्या कभी पहाड़ भी अपनी जगह से हिले.
रेगिस्तान में कभी फूल नहीं है खिले,
इस दुनिया में जो बिछड़ गए वो फिर ना मिले.

Monday, October 12, 2009

मेरी भी एक प्रीत है...


मेरे गीत, मेरा मनचाहा मीत, मेरी भी एक प्रीत,
मेरे लब, मेरा तनहा साया, मेरा भी एक संगीत.
मुझ में भी मोहब्बत, मुझ में भी धड़कन, दिल नहीं मेरा रकीब,
कर सकू दो बाते, हो सके कुछ चंद मुलाकाते, पर नहीं ऐसा मेरा नसीब.

मेरे दिल में भी एक तस्वीर है, पर जकड़े इसको एक ज़ंजीर है,
ह्रदय आईने के टुकड़े टुकड़े हुए, दोस्त ऐसी कुछ मेरी तक़दीर है.
दिल में दर्द का भारी बोझ लिए, चलता अकेले एक राहगीर है,
कभी ये भी थी खुशियों से भरी भरी, जो आज एक लुटी हुयी जागीर है.

बता दो मुझे होगा अहसान, आखिर क्यों होता है इश्क़ करने वाला वीरान,
क्या है इस पहेली का उत्तर आसन, बता दो क्यों बनता है प्यार का मशीहा ही हैवान.
मेरे दिल को देकर नाईलाज दर्द, कर दी मेरी हर महफ़िल सुनसान,
उजड़ गया मेरे सपनो का शहर, मै कुछ न कर सका बस देखता रहा होकर हैरान.

इश्क़ एक सपना है मेरे लिए, देखी जिसकी मैंने हकीकत है,
सच है ये कुछ नहीं देखता, इसका अपना ही एक मज़हब है.
पर ये एक ऐसी खुबसूरत शक्सियत है, जिसकी अच्छी नहीं सोहबत है,
दोस्त दूर रहना इससे, तुम्हारा चैन सुकून छीन लेगी ये कुछ ऐसी इसकी संगत है.

मेरे गीत, मेरा मनचाहा मीत, मेरी भी एक प्रीत,
मेरे लब, मेरा तनहा साया, मेरा भी एक संगीत.
मुझ में भी मोहब्बत, मुझ में भी धड़कन, दिल नहीं मेरा रकीब,
कर सकू दो बाते, हो सके कुछ चंद मुलाकाते, पर नहीं एसा मेरा नसीब.

Sunday, October 11, 2009

किस ने की दुआ....


एक अदा, एक दुआ, बीत गयी मेरी सदियों की सजा,
पल भर में जाने क्या हुआ, मिल गयी हर दर्द की दवा.
गुज़र रही थी जिंदगी, कट रहा था सफ़र पर नहीं था मज़ा,
किसने दुआ की मेरे लिये ,जो मिल गया मुझे मेरा खुदा.

आँखों में नए सपने, है दिल में नयी-नयी आशा,
ख़ुशी होती है क्या, समझ आ रही प्रेम की भाषा.
मौसम में है नयी बहार, बहारों से किया मैंने इकरार,
मन में नशा हो गया सवार, जो कबूल किया इन वादियों ने मेरा प्यार.

सुने आशियाने में नयी लहर,देखो खुशबुवो की धारा बह रही,
बस रहा एक नया शहर, हर और होगा ख़ुशी का पहर ये हवा कह रही.
गुज़रा था कभी एक कहर, कब से ये ज़मी थी उसे सह रही,
किसी की तो है मेहर, जो दुखों की ये ईमारत आज ढह रही.

एक अदा, एक दुआ, बीत गयी मेरी सदियों की सजा,
पल भर में जाने क्या हुआ, मिल गयी हर दर्द की दवा.
गुज़र रही थी जिंदगी, कट रहा था सफ़र पर नहीं था मज़ा,
किसने दुआ की मेरे लिये ,जो मिल गया मुझे मेरा खुदा.

Saturday, October 10, 2009

ये तन्हाई..


दिल की तन्हा बस्ती की कहानी है,
दूर दरिया है और प्यास बुझानी है.
कभी होती सुबह एक सुहानी है,
पर रात हमेशा विरहा की बितानी है.

एक पल को ठहर जाती सांसे है,
जब किसी के कदमों की आहट आती है.
मेरे मन में लाती कुछ राहत है,
पर ये तो हवा थी जो दरवाजा खटखटाती है.

इस बगीचे का कोई माली ना सही,
साथ सफर में कोई हमराही ना सही.
जीवन की तो सदा है ये रीत रही,
अकेला है जो सदा उसी की है जीत हुयी.

Friday, October 09, 2009

तुम आना..


कभी हो उदास तो मेरे पास चले आना,
अपने सारे गमों को तुम मुझे दे जाना.
मेरा ये दिल है एक छोटी सी दरिया,
तुम इसमे समां जाना जैसे सागर में नदिया.

महसूस किया है मैंने तन्हाई का बोझिल अहसास,
तुम आना जरुर मुझ पर कर विश्वास.
हर दर्द को लूँगा अपने में पूरा उतार,
दूंगा तुझे वापस तेरे चेहरे का निखार.

ओरों को देना ख़ुशी है मेरा एक उसूल,
आना करीब मेरे इस बेवफा दुनिया को भूल.
करूँगा में तेरा उस पल हमेशा इंतजार,
जिस दिन तू होगा एक तन्हा, परेशा, लाचार.

जब लगी थी ठोकर..


लगी एक ठोकर गिर गया वो शख्स,
रोकने की कोशिश, बह गए उसके अक्स.
जिंदगी को भूल चला था राह, उन दिनों,
मिले एसे घाव, संभलने में लगे महिनों.

गुज़रा उसका वक्त, समझने लगा ये दुनिया,
मिल ही गया उसे सच्चाई का बेरहम आईना.
अब दोबारा चला है वो मंजिल के फतेह का सफ़र,
पर अब नहीं है उसका कोई हमराही, हमसफ़र.

काँटों की राह पे चलके, सिखा है चलना,
वो चाहता नहीं दोबारा गमों से मिलना.
जीना हर लम्हें को उसका है मकसद,
अब पसंद नहीं और दुखों की उसे दस्तक.

पंछियों का सन्देश..


फलक को देखती मेरी ये नजर,
निहारती उड़ते पंछियों का मंजर.
कितनी अच्छी है ये इनकी किस्मत,
क्या नहीं रहती इनको कभी फुरसत?

बोलते है इनके फैले हुए पर,
जीत लेंगे ये हर एक सफ़र.
रहते है ये अक्सर खामोश,
ज़माने में बोलते इनके हुनर रोज़.

उड़ते है ये देकर संदेश,
नहीं इनका कोई एक देश.
इनका है पूरा अम्बर अपना,
हमारे लिये है जो एक सपना.

इनके बीच नहीं सीमाओ का बटवारा,
कहते है ये, संसार है हमारा.
इन्सान को है ये रोज़ समझाते,
क्यों हो आखिर तुम सियासत अपनाते?

गुजरता सफ़र..


उम्र गुज़र जायेगी कुछ अरसे बाद,
बस बाकि रह जायेगी तब केवल तेरी याद.
किसकी रही पकड़ ये है गुजरता वक्त,
अपना सफ़र बिताएगा यहाँ हर एक शख्स.
जो मिले कोई तन्हा मुकाम मुझे,
मै पूरी सिददत से जिऊंगा उसे.
बड़ी मुद्तो के बाद आते है कुछ पल,
नहीं पता क्या होगा आने वाला कल.
काश एक प्यार का मसीहा आ जाये,
कुछ दिन मेरे साथ का गवाह बन जाये.
मै तो हू इस बीतते सफर का गवाह,
ये गुज़रे चैन से मुझे नहीं जन्नत के चाह.