Sunday, December 20, 2009

जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना



जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना,
जुदा होकर दिल जिसे भूल जाये मेरा, मुझे उस कसम से क्या करना.

तेरी यादें ही मेरी अनमोल दौलत, चाहे आँसुओ का ये ठिकाना हो,
जमा किया खुशियों का खजाना, अब मुझे और रकम से क्या करना.

आंसू बहते नहीं, शायद आँखों से इनका नामों-ओ-निशा मिट गया,
ज़माने वालों दो धोखा दो दर्द, अब मुझे और सितम से क्या करना.

कभी सपनों में मिलू, तो उसके यहाँ होने का धोखा होता है मुझे,
ए खुदा हो सके तो तू भी सता ले, अब मुझे और बहम से क्या करना.

जाने क्यों अब जीने की तम्मना मर गयी है मेरी, पता नहीं दोस्तों,
बेआबरू हुआ इस महफ़िल में, अब मुझे और शरम से क्या करना.

ईश्क का अहसास किया हमने, ईश्क में खुद को बर्बाद किया हमने,
जलने वाला दे गया बहुत यादें, मुझे इक और सनम से क्या करना.

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