Wednesday, December 02, 2009

इक- इक लम्हें को सितमगर के ख्यालों में गुज़ारा था


इक- इक लम्हें को सितमगर के ख्यालों में गुज़ारा था,
ईश्क के तिलिस्म में क्या बताये कैसा हाल हमारा था.

उसके ख्वाबों की कीमत थी जिंदगी से भी ज्यादा मेरी,
उसकी यादों का अक्स ही मेरी नफस का एक सहारा था.

दूर कभी हो जाती नजरों से तो तड़पती थी रूह मेरी,
मुझे उसकी हिज़र का नहीं कभी एक पल भी गवारा था.

सामने जब होती तो नहीं बंद होती थी कभी पलके मेरी,
उसकी सूरत से सजा-सजा मेरे अरमानों का नज़ारा था.

एक रोज़ हमारी बात कुछ बिगड़ी तो रूठ गयी वो मुझसे,
मेरे दिल ने रो-रो कर उसे मनाने फिर खुदा को पुकारा था.

मैंने कहा कभी बिछड़े यार को आईने के सामने बैठने दिया,
मेरी नजरों की रोशनी ने उसकी भोली सूरत को सँवारा था.

आज कही तू बैठी अगर सुन पा रही हो आवाज़ मेरी तो,
रो-रो सदा ए दुआ में निकला था जो नाम वो तुम्हारा था.

2 comments:

  1. waah lucky ..kamaal kar diya bahut achha likh rahe ho ... keep it up

    ReplyDelete
  2. wht a nice thoughts yaar so beautiful

    ReplyDelete