Sunday, November 29, 2009

ईश्क का जो मैंने तुमसे मतलब पूछ लिया मेरे हुजूर


ईश्क का जो मैंने तुमसे मतलब पूछ लिया मेरे हुजूर,
कर दी क्या कोई गुस्ताखी जो हो गया इतना गुरुर.

ख्वाब दिल्लगी के अब आते मुझे हर शामो-सहर,
बेखुदी और तड़पते दिल का ईलाज बताईयेगा ज़रूर.

आँखे खुली हो या हो बंद इनके कोई ना मायने रहे,
अंग-अंग पे जो है सवार वो है आपकी चाहत का सुरूर.

बता तो दो इन नजरो में क्या ईश्क के तीर छिपे है,
जो हो गया दिल अपनी सल्तनत हारने को मजबूर.

अब खता हो गयी तो लेनदेन की शुरुआत हो जाये,
रूह के अल्फास बनो तुम यही इस सौदे का दस्तूर.

लैला मजनू के ईश्क के किस्से आपने सुने होंगे,
भर दो अपनी हामी हम भी ज़रा हो जाये मशहूर.

जुस्तजू नहीं ज़न्नत की शहीद ए वफ़ा नाम है


जुस्तजू नहीं ज़न्नत की शहीद ए वफ़ा नाम है,
अपने दिल के ज़ज्बातों की नुमाइंदगी ही काम है.

कौन कम्बखत तलाशता है दो पल का चैन यहाँ,
मुझे तो रोज़ आवारगी में ही सच्चा आराम है.

गुज़ारिशे थी मन की बहुत किसी ज़माने में,
बिका ख्वाहिशो के दौरान नहीं मिला दाम है.

ज़ह्न्नुम कैसा होता है कोई मुझ से पूछे कभी,
मेरे लिए तो इसका अहसास जैसे रोज़ आम है.

मेरे गुज़रे सफ़र के निशा मत देख ए साकी,
ईश्क के क़त्ल का मुझ पर इक ईल्ज़ाम है.

जो जी गया ज़माने में तोड़ हर गम की दिवार,
उसको झुक कर इस दिल की नज़र का सलाम है.

हमारी महफ़िल में आये हों तो मेरा आदाब है


हमारी महफ़िल में आये हों तो मेरा आदाब है,
ना नजरों से बात करो नहीं इनका जवाब है.

महफ़िल की हवा है कुछ बदल सी गयी,
लगता छा गया आपके हुस्न का सबाब है.

ये अदाये ये हँसी, कैसे दिलकश अंदाज़ है,
लगे ऐसा जैसे नजदीक चमन का माहताब है.

कैसे बया करू जज्बात सामने जो आप है,
परी हों जैसे रूबरू बदले से वक्त के हिसाब है.

हर साख है सोख और हर सोखी में आप है,
छुप के मै जिसे पी रहा तेरे नजरों की शराब है.

Saturday, November 28, 2009

तन्हाई है तो क्या हुआ शहर में मैखाने बहुत है


तन्हाई है तो क्या हुआ शहर में मैखाने बहुत है,
गम को ज़रा भूला लू जिनमे ऐसे पैमाने बहुत है.

अपने प्यार का बखान करे हर मुलाकात में,
इस शहर में ऐसे बहलाने वाले दीवाने बहुत है.

कभी खत्म नहीं होती अलफासो की रवानगी,
इस शख्स के पास बयानगी के फ़साने बहुत है.

अभी तो सूरज के चढ़ने का सफ़र शुरू हुआ है,
दुनिया में अभी महफिलों के रंग सजाने बहुत है.

एक जमात है इस दिल में खुबसूरत नज्मों की,
ज़माने को ईश्क के नशे के किस्से सुनाने बहुत है.

बहुत सूखे पत्ते बिखरे है मेरे वीरान आशियाने में,
वक्त है कम दर्द के पुराने निशान जलाने बहुत है.

मैं जब से इस वक्त के दौर को समझने लगा हूँ


मैं जब से इस वक्त के दौर को समझने लगा हूँ,
हर गिला हर शिकवा से किनारा करने लगा हूँ.

दुनिया की लज्ज़त के किस्से धोखे है दोस्तों,
हर साख की असलियत के पास ठहरने लगा हूँ.

बेमुहाबा होना ही पड़ा इस गैरत की महफ़िल में,
मै खुद अपनी जलती आग में अब जलने लगा हूँ.

यहाँ गर्दिश ए दौर से डर कर दूर क्या भागना,
मै अपने सितम के गुबार के साथ गुजरने लगा हूँ.

दुनिया में दिलों में बसते है कितने लाखों अंदेशे,
मै अपने बहाये आँसुओ की नदी में बहने लगा हूँ.

कौन कहता है अपाहिज पार नहीं करते समुंदर,
मै इस सिकन के माहौल से अब उभरने लगा हूँ.

किसी पल के दरमिया बहाये थे खून के आँसू,
रहमत खुदा की उन्ही से आज सवरने लगा हूँ.

Friday, November 27, 2009

जिंदगी मेरी कदम दर कदम एक शिकस्त है



जिंदगी मेरी कदम दर कदम एक शिकस्त है,
मिलू दोबारा बहारों से बस यही मेरी हसरत है.

दुनिया कैसे जी लेती है यू बेआबरू होकर,
देख इनकी पत्थरदिल आदत मुझे हैरत है.

दिन का उजाला मेरे लिए तो एक अँधेरा है,
जो कभी बनी नही कुछ ऐसी मेरी किस्मत है.

कहा से सोचों महफिलों की मौज के सपने,
अपना तो हर ख्याल जैसे एक रुखसत है.

जो नहीं था मुक्कदर में मेरे वो ना मिला,
मुझे ए खुदा तुझसे ना कभी शिकायत है.

मिट नहीं सकते कुछ ऐसे निशा बन गए,
इस दिल की दास्तान ताउम्र सलामत है.

ये दर्द ही मेरा दिलनशी बन गया अब तो,
दवा ना मिली तो शायरों सी मेरे तबीयत है.

टूट पड़ा सोज़ का ऐसा कहर



ईश्क में मिले दर्द की दवा ढूढता रहता दरबदर,
कैसा बेरहम सा रोग दिया तुने मुझे ए हमसफर.

दुनिया क्या जाने मेरे आँसुओ में खून मिला है,
कहा छुपाऊ रुसवा चेहरे को बता दे मुझे रहगुज़र.

तू क्या जाने कत्लगाह सी मुझे दुनिया लगती,
तेरी यादों के अक्स लिए होती मेरी हर शामो-सहर.

मिले मुझे जहा सुकून की मंजिल का रास्ता,
ए खुदा कर रहम बना दे निशात की वो नहर.

तुम तो चल दिए हँस के, मुड़ कर भी ना देखा,
क्या बताये कैसे पी गये सितम का ये कड़वा ज़हर.

अब कहा से लाऊ रूठ चुकी खुशियों की वो बहार,
उम्मीद न थी जिसकी टूट पड़ा सोज़ का ऐसा कहर.

क्या करूँगा खुदाई का


न रहा शिकवा कभी किस्मत की बेवफाई का,
न ही कोई गिला मेरे रहबर की जुदाई का.

छोड़ गया साथ मेरा तो क्या हुआ,
आज भी महकता है चेहरा उसकी वफाई का.

मेरी रूह से उसका नाता सदियों पुराना,
भला कैसे होगा अहसास बोझिल तन्हाई का.

न मेरा कोई हमपेशा न कोई हमराज़,
क्या करूँगा लेकर उधार किसी की दुहाई का.

बस जब तक जिऊ उसकी यादों के साथ रहू,
नहीं वहशत कहने में क्या करूँगा खुदाई का.

Thursday, November 26, 2009

वक्त के आखिरी फ़साने तक तेरा इंतजार करूँगा



वक्त के आखिरी फ़साने तक तेरा इंतजार करूँगा,
हमारे बीच की दूरी के सिमटने का इंतजार करूँगा.

तेरे संग गुजरी यादों का सदा तलबगार रहूँगा,
जब आँख खुलेगी तेरी ही सूरत का निहार करूँगा.

एक-एक पल की कहानी कैद इस दिल में,
हर गुज़रे लम्हें में तेरे सपनों का दीदार करूँगा.

जब तेरा साया किस्मत से दिख जाये कही,
अपने सच्चे ईश्क के जज्बातों का इज़हार करूँगा.

मै तो एक आग का जलता बुझता दरिया हू,
कहा अपने ख्वाबों की हकीकत साकार करूँगा.

इस जिस्म में मेरी रूह का बसेरा है जब तक,
अपनी अधूरी मोहब्बत का सच्चा दिलदार रहूँगा.

आँखों में चेहरा लबो पे नाम छोड़ जाऊंगा उस दिन



मेरे उठते जनाजे का नज़ारा देख वो रोयेगा उस दिन,
मै छोड़ कर ये हँसती दुनिया चला जाऊंगा जिस दिन.

कैसे अपने बहते आंसुओ की बुँदे थाम लेगी वो,
कलम छूट जायेगी हमेशा के लिये हाथों से जिस दिन.

न गुज़ेगी ये आवाज़ उसके प्यार के गीतों से फिर,
मेरे नगमों की बयानगी खामोश हो जायेगी जिस दिन.

मेरी तो उम्र गुजर जायेगी यू नाउम्मीद शायर बन कर,
याद उसे आऊंगा कदमों के निशा मिट जायेंगे जिस दिन.

कौन यहाँ से न गया, मैंने भी जाना है एक दिन,
पर आँखों में चेहरा लबो पे नाम छोड़ जाऊंगा उस दिन.

Wednesday, November 25, 2009

हर शख्स को उसकी आरजू सा यहाँ प्यार नहीं मिलता


हर शख्स को उसकी आरजू सा यहाँ प्यार नहीं मिलता,
दिल को तलाश हो जिसकी वो करार नहीं मिलता.

कितने आबाद हुये, यहाँ न जाने कितने बर्बाद हुये,
पर हर किसी को उसकी हसरतों सा दीदार नहीं मिलता.

चाहते है सब आशियाने में हो जाये ईश्क की इशरत,
पर हर किसी को उसकी मोहब्बत का इज़हार नहीं मिलता.

अपनी अहद तो यहाँ हर कोई आशिक निभाता आया है,
खुदा से बढकर चाहे जिसे जाने क्यों वो दिलदार नहीं मिलता.

ऐतबार करो मेरा एक अज़ाब का ये बेरहम सा सफ़र है,
दुस्वार है मंजिल, यहाँ लुफ्त का इकरार नहीं मिलता.

मुझे जीस्त ओ जिल्लत का सामान मिला है


मुझे जीस्त ओ जिल्लत का सामान मिला है,
सितम और आंसुओ का जो दर्दभरा ईनाम मिला है.

एक-एक जुम्बिश पर दर्द की शमशीर लटकी है जैसे,
दुनिया कहती है मुझे मोहब्बत का गुमान मिला है.

एक बयाबान सी है ये मेरी तनहा और अकेली जिंदगी,
हर मोड़ पर हिज्र और रंजिश का सदा मक़ाम मिला है.

मेरे दिल से आहों की आवाज़ निकलती शब ओ शाम,
कहा बेवफा दुनिया में मुझे ईश्क का इंतजाम मिला है.

मेरी हर हर्फ़ ओ दुआ में एक फरियाद है खुदा से,
पर बदले में मुझे हर एक मंज़र यहाँ वीरान मिला है.

इक चैन ओ सुकून का मुझे पैगाम आया है



इक चैन ओ सुकून का मुझे पैगाम आया है,
जाने कितनी सदियों बाद मेरा अरमान आया है.

कज़ा के माफिक सरक रहा था मेरा हर कदम,
जैसे मेरा खुदा मेरी महफ़िल में सरेआम आया है.

कदमो की आहट दुवाओ की आवाज़ के मानिंद,
नशा सा छा गया मेरे दिल का जो मेहमान आया है.

कर दो सादिर के बेजार नहीं मुझसे अब बहारे,
बरसो से रूठा मेरा हमदम मेरा जहान आया है.

नहीं मतलब क्या होगी जिंदगानी अदम के बाद,
तलाश थी जिसकी खुशियों का वो इंतजाम आया है.

Saturday, November 21, 2009

तेरे शहर की हवा बेगानी लगी..



तेरे शहर की हवा मुझे कुछ बेगानी लगी,
यहाँ हर साख मुझे ईश्क से अनजानी लगी.

हर नज़र में है कशिश, हर रूह है प्यासी,
ऐसी यहाँ की तड़पती हर जवानी लगी.

हम तो टूटे दिल को लिए फिरते है गलियों में,
हर मोड़ पर इंतजार करती नयी कहानी लगी.

मेरी प्यास का आलम ये शहर क्या जाने,
ईश्क के है नए राही, ऐसी इनकी निशानी लगी.

तेरे ज़ख्म कही फिर न हो जाये हरे बदनसीब,
देख इस वक्त का फ़साना मुझे हैरानी लगी.

Friday, November 20, 2009

ओ मुसाफिर...


ओ ईश्क की राह चलने वाले मुसाफिर तू याद रखना,
हो सके तो तन्हाईयो की दवा भी अपने साथ रखना.

मै ये नहीं कहता दिल में मोहब्बत की आश न रखना,
बस हो सके तो इस सफ़र की ठोकरों से इत्तेफाक रखना.

आँखो में कर ज़मा, तू आसूओ की बरसात रखना,
जो अकेलेपन के साथ बटे, तू जिंदा वो अहसास रखना.

दिल के कब्रगाह की ज़मी, तू जरा अपने आसपास रखना,
ओ मुसाफिर टूट कर भी जो न टूटे कुछ ऐसे तू ख्यालात रखना.

मिल जाये जन्नत तो उसमे भी तू तन्हा होने का अरमान रखना,
अपनी अकेली रातों के लिए बेवफा कहानियो का सामान रखना.

लम्हा-लम्हा अकेले तू रोयेगा जहा, तैयार वो जहान रखना,
हो सके तो बुलंद तू, अपने सच्चे ईश्क के निशान रखना.

Tuesday, November 17, 2009

जब उस से मिला..


सपनों की महफिलों को उसने कुछ यू सजा दिया,
मेरी रूह को सकू मिला जन्नत सा मज़ा लिया.
हर ख्वाब में खुश्बू उसकी मुझे ऐसा महका दिया,
मेरे रोम-रोम को नजरों से जैसे उसने बहका दिया.  

आँखों से बात हुयी कुछ उसने मुझे बता दिया,
अकेला नहीं मुसाफिर तू दिल से ये जता दिया.
मदहोश मन उड़ता हवा में जैसे उसने नशा दिया,
मै याद रखू ताउम्र कुछ ऐसे उसने हँसा दिया.

तरन्नुम में लगन जगी ऐसा राग सुना दिया,
रोशन कर लौ प्रेम की खुद को नजरों में चढ़ा दिया.
ईश्क की आग दिखी नहीं पर उसमे मुझे जला दिया,
खुद को निहार सकू जिसमे वो दरिया मुझे थमा दिया.

बहारों ने दस्तक दी ये हमने अब मान लिया,
दुनिया में बचा है खुदा इसको भी अब जान लिया.
जब से उस आईने से फ़रिश्ते का दामन थाम लिया,
अपनी हर बीती बदकिस्मती का जैसे आज ईनाम लिया.

Monday, November 16, 2009

सनम बना लिया..



मोहब्बत को जिंदगी का सुरीला गीत बना दिया,
मैंने अपनी हर हार को जीत बना लिया.
हर अदा हर खता को मैंने संगीत बना लिया,
हर दर्द हर सजा को आज अपना मीत बना लिया.

काँटे हो गये हैरान उनको जो अपना अज़ीज़ बना लिया,
देखो मैंने अपनी दिल्लगी को अपना नसीब बना लिया.
जो थी मीलों दूर उस हँसी को करीब बुला लिया,
आखिर हर ज़ख्म हर दर्द को मैंने आज रकीब बना लिया.

टूट चुके ख्वाबों को समेटकर अपना कदम बना लिया,
राह की ठोकरों से दिल लगा उन्हें हमदम बना लिया.
जब से उस अनजाने साये को अपना सनम बना लिया,
हर सितम से मिलती है ख़ुशी कैसा ये वहम बना लिया.

मेरी तन्हाईयो ने अब नया एक गुलशन बना लिया,
फिर सावन को बुला खुशनुमा आगन बना लिया.
मैंने तो कब्र से निकल घूमी दुनिया ऐसा जनम बना लिया,
ए आँसू ए सिकन तुम्ही हो मेरे, तुम्हें अब अपना सनम बना लिया.

Thursday, November 12, 2009

मैंने इसी में सब कुछ पा लिया..



किसी की आँखों से बहते आँसुओ को थाम लिया,
मैंने उन्ही को अनमोल मोती मान लिया.
किसी की मौन छुपी भावनाओ को जान लिया,
मैंने उन्ही को अपना सच्चा साथी मान लिया.

किसी नन्ही जान के साथ तोतली जबान में गा लिया,
मैंने उसे ही अपने दिल का संगीत सुना लिया.
किसी गरीब को दिल से इज्ज़त का तोहफा थमा दिया,
मैंने इसी लेनदेन में अपने खुदा को पा लिया.

किसी नौजवान की आशाओ को और परवान चढ़ा दिया,
मैंने इसी में अपनी मंजिल के शिखर को पा लिया.
किसी शहीद की शहादत पर एक दीप जला लिया,
मैंने इसी में हर जनम का सुकून पा लिया.

किसी टूटे दिल को अपनी दोस्ती से मरहम लगा दिया,
मैंने इसी में अपने खोये इश्क का भरम मिटा लिया.
किसी भूखे को एक रात की रोटी का उपहार दिला दिया,
मैंने इसी में दुनिया का सबसे बड़ा पुरुस्कार हथिया लिया.

Tuesday, November 10, 2009

शायद किसी ने मुझे बुला लिया...


अपनी साँसों को उसकी साँस में उतार सकू,
उसके राहे-ए-गम से मै उसे पुकार सकू.
मुरझाये चेहरे को उसके मै निखार सकू,
गमों को मिटा हँसी को थोड़ा निहार सकू.

उनकी बातों से रुसवाई का अहसास किया,
उसने शायद बेवफा दुनिया पर विश्वास किया.
इश्क की राह के जख्मों ने उसे उदास किया,
कैसे कह दू मैंने भी बेवफाई का अहसास किया.

इश्क के आँसुओ को कहा किसने बहते देखा,
हँस दे दर्द में ऐसा किसको किसने सहते देखा.
हमने तो बहारों को भी एक दूसरे से कहते देखा,
हम नहीं जाती वहा जहा प्रेम लौ को जलते देखा.

उसके दर्द की कसक ने मेरी आँखों को रुला दिया,
बरसों बाद मेरे पत्थर दिल को पिघला दिया.
सुन उसकी दास्ता हमने भी अपना गम भूला लिया,
किस ने दी आवाज़, शायद फिर किसी ने मुझे बुला लिया.

Monday, November 09, 2009

बहुत आँसू तेरे बह गए..


रात अब बीत चुकी, आज फिर बहुत आँसू तेरे बह गये,
इस मतलबी दुनिया में, अब और कौन तेरे रह गये.
जब कभी तेरे आँसू गिरे, दर्द ओ गम हम सह गये,
आवाज़ तेरी जब भी उदास हुयी, खून के आँसू मेरे बह गये.

तेरी राहों में तुझे मिले काँटे, जख्म तेरे मुझ से कह गये,
शाम को थी तुम तन्हा, वीरानियों के सितम मुझ पे ढह गये.
जब कभी मैंने नगमे लिखे, पन्ने तेरी आहों से रंग गये,
उठा जब भी, कदम बढ़े, तेरे दर्द के साये मेरे संग गये.

माना राह में बेवफाई के घाव मिले, खामोश तुझे कर गये,
प्रीत की राह के ठोकर खाये, तन्हा मुसाफिर तुम रह गये.
सुन सको आवाज़ तो, मेरे हर लब्ज़ तुमसे कह गये,
क्या तुम्हारी गुजरी राहों के नग्मे ही, मेरे लिए अब रह गये.

तेरी सिसकियों की आह सुनी, क्या बताऊ कैसे हम सह गये,
ज़हर का था जैसे एक घूट मेरे लिए, तेरे जो आँसू बह गये.
पास था दरिया रहा मै प्यासा, फिर भी इसे हम सह गये,
मुक्कदर से मिलता इश्क ए दोस्त, कुछ ऐसा हवा के झोंके कह गये.

Friday, November 06, 2009

लेखनी से तुम वयक्त करो..



शब्दों से अभिव्यक्त करो,
तुम अपनी लेखनी से वयक्त करो.
किसी के अश्रु बूंदों का खारापन,
किसी की लाचारी का दर्द लिखो.

स्याही से उदघोष करो,
तुम अपनी कलम का विजयघोष करो.
किसी गरीब के नंगे तन,
किसी भूखे पेट की कहानी पर लिखो.

पंक्तियों से मस्तिष्क प्रभावित करो,
छन्दों से राष्ट्र भावना प्रचारित करो.
किसी शहीद की कुर्बान जवानी पर,
किसी देशभक्त की भूली निशानी पर लिखो.

वाक्यों से मानव कल्याण करो,
कविता से नव राष्ट्र का निर्माण करो.
फूट-पाथ पर गुजरी रातों की ठिठुरन,
भीख मांगते हाथो की कहानी लिखो.

शब्दों से अभिव्यक्त करो,
तुम अपनी लेखनी से वयक्त करो.
किसी के अश्रु बूंदों का खारापन,
किसी की लाचारी का दर्द लिखो.

Wednesday, November 04, 2009

तुम फिर से आओ..


मेरे ख्वाहिशों के आसमा में छायी धुंध की चादर फिर से हटाओ,
कब से हू प्यासा, आकर तुम फिर मेरी प्यास बुझाओ.
मेरे तपिश भरे दामन को सकू दे जाओ फिर से तुम काली घटाओ,
मेरे गम का ढेर बहुत बढ़ गया, आकर तुम जरा इन्हे बटाओ.

खुश्बुओ की हवा न चली बीते बरसो, बहा दो बयार गुलशन को महकाओ,
आगन सुनसान सुरिली साज़ न बजी, गीत गुनगुनाओ आशियाना चहकाओं.
भूला दिल ईश्क की रूमानियत, बहारो को खिलाओ मुझे फिर बहकाओ,
छुप गया सूरज मुक्कदर का, सितारों से तुम मेरी तन्हा रात चमकाओ.

नजरो की बेकरारी की आग बुझाओ, बस कुछ पल फिर मेरे साथ बिताओ,
फिर इस जिस्म में साँस डाल जाओ, अपनी अदाओ से मुझको सताओ.
वो सुने हुये पुराने नगमे फिर तुम गाओ, फिर से वो पुराना जावेदा प्यार जताओ,
मै हू बहुत अकेला, मुझे तुम मेरी मंजिल तक पहुचाओ.

Monday, November 02, 2009

वही मेरे साज बन गये..


टूटे सपनों के ख़यालात की नुमाइंदगी ही मेरे साज़ बन गये,
मेरे दिल के जख्मों के नुमाईश की अदा ही मेरे आज बन गये.
सूखी दरिया में बहता है खून मेरे शरीर का ये ही मेरे राज़ बन गये,
तन्हाई में आता है मुझे सुकून,अकेलेपन के किस्से ही मेरे ताज बन गये.

दुनिया की बेवफाई के चर्चे हो रहे महफिलों में अब तो ये ही मेरे अंदाज़ बन गये,
टूटे दिलों को जो दे कुछ राहत,लोग वो ही मेरे नये नज्मों की आवाज़ बन गये.
ज़माने भर से पुछू दर्द के रिहाई की चाबी कुछ ऐसे अ़ब मेरे मिजाज़ बन गये,
एक बार मर फिर शुरू की जिंदगी इसी दास्ता के किस्से मेरे आगाज बन गये.

ज़हर के प्याले का कड़वा घूट पिया था कभी,नशा उसका ही मेरे अहसास बन गये,
राह में मिले कांच के टुकड़े बने गहरे घाव,देखो आज वो ही मेरे लिबास बन गये.
एक बार किसी ने बोला तुम अ़ब नहीं हमारे,बाद उसके दिन मेरे कुछ उदास बन गये,
उसी अकेलेपन की सोहबत का असर,दिल के आंसू बह गये,वही मेरे साज़ बन गये.