Friday, November 20, 2009

ओ मुसाफिर...


ओ ईश्क की राह चलने वाले मुसाफिर तू याद रखना,
हो सके तो तन्हाईयो की दवा भी अपने साथ रखना.

मै ये नहीं कहता दिल में मोहब्बत की आश न रखना,
बस हो सके तो इस सफ़र की ठोकरों से इत्तेफाक रखना.

आँखो में कर ज़मा, तू आसूओ की बरसात रखना,
जो अकेलेपन के साथ बटे, तू जिंदा वो अहसास रखना.

दिल के कब्रगाह की ज़मी, तू जरा अपने आसपास रखना,
ओ मुसाफिर टूट कर भी जो न टूटे कुछ ऐसे तू ख्यालात रखना.

मिल जाये जन्नत तो उसमे भी तू तन्हा होने का अरमान रखना,
अपनी अकेली रातों के लिए बेवफा कहानियो का सामान रखना.

लम्हा-लम्हा अकेले तू रोयेगा जहा, तैयार वो जहान रखना,
हो सके तो बुलंद तू, अपने सच्चे ईश्क के निशान रखना.

3 comments: