Monday, November 02, 2009

वही मेरे साज बन गये..


टूटे सपनों के ख़यालात की नुमाइंदगी ही मेरे साज़ बन गये,
मेरे दिल के जख्मों के नुमाईश की अदा ही मेरे आज बन गये.
सूखी दरिया में बहता है खून मेरे शरीर का ये ही मेरे राज़ बन गये,
तन्हाई में आता है मुझे सुकून,अकेलेपन के किस्से ही मेरे ताज बन गये.

दुनिया की बेवफाई के चर्चे हो रहे महफिलों में अब तो ये ही मेरे अंदाज़ बन गये,
टूटे दिलों को जो दे कुछ राहत,लोग वो ही मेरे नये नज्मों की आवाज़ बन गये.
ज़माने भर से पुछू दर्द के रिहाई की चाबी कुछ ऐसे अ़ब मेरे मिजाज़ बन गये,
एक बार मर फिर शुरू की जिंदगी इसी दास्ता के किस्से मेरे आगाज बन गये.

ज़हर के प्याले का कड़वा घूट पिया था कभी,नशा उसका ही मेरे अहसास बन गये,
राह में मिले कांच के टुकड़े बने गहरे घाव,देखो आज वो ही मेरे लिबास बन गये.
एक बार किसी ने बोला तुम अ़ब नहीं हमारे,बाद उसके दिन मेरे कुछ उदास बन गये,
उसी अकेलेपन की सोहबत का असर,दिल के आंसू बह गये,वही मेरे साज़ बन गये.

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