Tuesday, December 01, 2009

कोई बता दे कैसे चेहरे की असलियत को छुपाते हैं



कोई बता दे कैसे चेहरे की असलियत को छुपाते हैं,
ज़माने वाले मेरे घावों को बार-बार छेड़ दुखाते हैं.

सुनने वालो मेरी लाचारी का अहसास समझो जरा,
अदावत का पता नहीं जाने क्यों लोग मुझे जलाते हैं.

ठोकरे इतनी खाई हैं की दिल में एक डर समाया है,
हम हर राह पर अब फूलों से भी खुद को बचाते हैं.

नहीं देखना अब मुझे सितारों से सजा गुलशिता भी,
इस दुनिया के हँसते हुये चेहरे जाने क्यों मुझे डराते है.

अपना तो एक ये गम ही सच्चा रहबर साबित हुआ,
हम इसी में अपनी सल्तनत के सुनहरे सपने सजाते हैं.

दर्द ही केवल आज तक मुझ से एक नगमा बना,
हम इसी को अक्सर ख्वाबों-ख्याली में गुनगुनाते हैं.

ये ख़ुशी जिसे इस ज़माने वाले यहाँ वहा ढूढ़ते,
हम इसी को अपने रास्ते से चुन चुन कर हटाते हैं.

मेरे बुरे वक्त के उस दौर में सदा रहा है जो मेरे साथ,
हम उन्ही खून के कतरों से इस बयाबान को भिगाते हैं.

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