Sunday, December 20, 2009

जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना



जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना,
जुदा होकर दिल जिसे भूल जाये मेरा, मुझे उस कसम से क्या करना.

तेरी यादें ही मेरी अनमोल दौलत, चाहे आँसुओ का ये ठिकाना हो,
जमा किया खुशियों का खजाना, अब मुझे और रकम से क्या करना.

आंसू बहते नहीं, शायद आँखों से इनका नामों-ओ-निशा मिट गया,
ज़माने वालों दो धोखा दो दर्द, अब मुझे और सितम से क्या करना.

कभी सपनों में मिलू, तो उसके यहाँ होने का धोखा होता है मुझे,
ए खुदा हो सके तो तू भी सता ले, अब मुझे और बहम से क्या करना.

जाने क्यों अब जीने की तम्मना मर गयी है मेरी, पता नहीं दोस्तों,
बेआबरू हुआ इस महफ़िल में, अब मुझे और शरम से क्या करना.

ईश्क का अहसास किया हमने, ईश्क में खुद को बर्बाद किया हमने,
जलने वाला दे गया बहुत यादें, मुझे इक और सनम से क्या करना.

Sunday, December 06, 2009

हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती


हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती,
मेरी हर रात तेरे ही नाम का आलाप कर ढलती.

कहीं और नहीं मिलता सुकून तेरे चेहरे के सिवा,
ईश्क की आग मेरे दिल में धीरे-धीरे सुलगती.

क्या बयां करू मैं अहसासों की दास्ता-ए-कहानी,
हर बात में ज़िक्र तेरा एक ही आवाज़ निकलती.

तेरी अदा सबसे जुदा लगती है जाने क्यों मुझे,
मेरे मन की हर सोच तेरे ही दीदार को मचलती.

आँखों में तेरा ही चेहरा दिल में तेरी ही है यादें,
मेरे जिगर में एक हसी तस्वीर तेरी ही सवरती.

किस मोड़ पर जाने जिंदगानी गुज़र रही मेरी,
हर रात उसके ही ख्यालों के साथ अब निकलती.

Saturday, December 05, 2009

मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना


मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना,
फिर आज जल गया ईश्क की आग में एक दीवाना.

ए मालिक मेरे तुने क्या कहानी लिख दी मेरी ये,
जिसे मैं हर गजल में बोलू बना दिया ऐसा अफसाना.

उसके ख्यालों की बातें करने लगा हूँ अब तो रोज़,
नहीं बची कोई नज़्म और चाहूँ जिसे अब गुनगुनाना.

लगने लगा खुद को खुद से दूर कर रहा हू जैसे मैं,
वक्त ए दौर देखो हो गया अपने दोस्तों से भी बेगाना.

मेरी नफस में उसके ही नाम का बसेरा है अब तो,
जाने क्यों चाहू उसकी याद में खुद को अब जलाना.

कब सहर हुयी जाने कब गुजरती हुयी सब बीत गयी,
नहीं याद कुछ देखो मेरे नशे को बन गया मैं परवाना.

ए मालिक सदा में तेरी ही बंदगी के गीत रहे है मेरे,
यकीं तुझ पर मंजिल को मेरी बस तू फूलों से सजाना.

मेरी ख्यालो में मत खोना हसेंगे तुझ पर ज़माने वाले


मेरी ख्यालो में मत खोना हसेंगे तुझ पर ज़माने वाले,
आग जो लग रही नहीं मिलेंगे कहीं उसे बुझाने वाले.

कहते है ईश्क किया नहीं जाता ये तो बस हो जाता है,
नज़रे सब बयां कर गयी तुझे क्या पता ए छुपाने वाले.

लोग कहते है तू कुछ बदली-बदली रहती है आजकल,
नहीं पता क्या होगा तेरा मुझे आँखों में बसाने वाले.

अब तुझे होने लगा है असर ईश्क के नशे का शायद,
मत सोच इतना मेरे ही ख्वाबों को मन में सजाने वाले.

कभी किसी की नजर ना लगे तेरी भोली सूरत को,
हर मोड़ पर बैठे है घाव देकर दिल को दुखाने वाले.

मेरे सपनों की कीमत को कभी कम मत समझना,
बहुत मिलेंगे तुझे तेरे ईश्क की चाह लेकर आने वाले.

तुझे नहीं पता तेरा नया नया आगाजें ए ईश्क है ये,
सांसे मागेंगी केवल मेरा साथ मुझे सताकर जाने वाले.

Friday, December 04, 2009

एक तेरा ही चेहरा जो छाया है मेरे ख्वाबों में


एक तेरा ही चेहरा जो छाया है मेरे ख्वाबों में,
नज़र आये तू ही तू मुझे अब मेरी किताबों में.

ज़माने के दौर बदले यारों मेरा भी वक्त बदला,
तेरा ही दीदार ईश्क के मैखाने की शराबों में.

बाते करू अपने मालिक से अब तो तेरी ही,
तेरे ही नाम का इज़हार मेरे सब जवाबों में.

ज़रा बता दे मुझे क्या देखू क्या ना देखू,
तू ही तू नज़र आये इस बहार के सबाबो में.

कर दिया गुनाह हम भी ईश्क के मरीज़ बने,
करने लगा अपनी गिनती मै भी अब खराबों में.

Thursday, December 03, 2009

क्या बताये खुदा ने मुझे कैसा ईनाम दिया है



क्या बताये खुदा ने मुझे कैसा ईनाम दिया है,
तुमसे मिला कर पूरा जन्नत का अरमान किया है.

तस्सवुर की गिरानी तस्वीर थी जो दिल में,
खुदा ने उसको थमा खुशियों को अंजाम दिया है.

कैसा दौर ए वक्त आ गया मैं बहकने लगा हूँ,
उसके ईश्क पे खुद को फ़ना हर शाम किया है.

उसके लबों से निकली दिल को छू गयी हर सदा,
क्या बताये उसने दिल को कैसा आराम दिया है.

बरसने लगे बादल पर नहीं मौसम सावन का,
दिल की लगी ने आज फिर काम तमाम किया है.

अदा क्या बया करू जन्नत की सहजादी वो,
उसकी फिजा को देख दिलरुबा उसे नाम दिया है.

Wednesday, December 02, 2009

ज़माना कहता है ईश्क ना कर ये तो एक खता है


ज़माना कहता है ईश्क ना कर ये तो एक खता है,
इसका जो दर्द है वो जहा की महंगी एक सजा है.

पर क्या बताऊ एक नशा सा चढ़ा आपके साथ का,
मेरी प्यासी रूह ने इसी में पाया जन्नत सा मज़ा है.

मेरी हर बात में तेरे ही नाम की खुश्बू समा गयी ,
कौन दूसरा मेरे दिल के करीब अब तेरे सिवा है.

तेरी ही वफ़ा की उम्मीद इस काफ़िर के दिल में,
मेरे जीने की ए हमदम अब तू ही तो एक दवा है.

कितनी दफा मैं मरा मुझे ना इसका पता लगा,
तेरे ही ईश्क के किस्से अब कुछ ऐसी मेरी अदा है.

मेरी रूह में जो बस गया वो साया तेरी ही सूरत का,
नहीं लगता अब मुझे खफा मुझ से मेरा खुदा है.

तेरी दुआ का है असर चेहरे पे जो हँसी झलक रही,
हो जाऊ फ़ना अपनी चाहत पे यही आखिरी रजा है.

इक- इक लम्हें को सितमगर के ख्यालों में गुज़ारा था


इक- इक लम्हें को सितमगर के ख्यालों में गुज़ारा था,
ईश्क के तिलिस्म में क्या बताये कैसा हाल हमारा था.

उसके ख्वाबों की कीमत थी जिंदगी से भी ज्यादा मेरी,
उसकी यादों का अक्स ही मेरी नफस का एक सहारा था.

दूर कभी हो जाती नजरों से तो तड़पती थी रूह मेरी,
मुझे उसकी हिज़र का नहीं कभी एक पल भी गवारा था.

सामने जब होती तो नहीं बंद होती थी कभी पलके मेरी,
उसकी सूरत से सजा-सजा मेरे अरमानों का नज़ारा था.

एक रोज़ हमारी बात कुछ बिगड़ी तो रूठ गयी वो मुझसे,
मेरे दिल ने रो-रो कर उसे मनाने फिर खुदा को पुकारा था.

मैंने कहा कभी बिछड़े यार को आईने के सामने बैठने दिया,
मेरी नजरों की रोशनी ने उसकी भोली सूरत को सँवारा था.

आज कही तू बैठी अगर सुन पा रही हो आवाज़ मेरी तो,
रो-रो सदा ए दुआ में निकला था जो नाम वो तुम्हारा था.

Tuesday, December 01, 2009

कहा मैंने कभी मौजे ए महफ़िल को सजाया है


इस शाम की तन्हाई का ये जो आलम छाया है,
हँसी इक तवक्को बनी आँसुओ से इसे सजाया है.

हर मजालिस मेरी सुनी बेकार हर इल्फात गया,
गैरो की क्या बात करे हमे अपनों ने सताया है.

जब कभी शिकवो के मज़मून दिमाग में आये,
बेवफा यादों को मैंने रो रो कर फिर जलाया है.

जब कभी इस ज़माने ने पुराने जख्म छेड़े तो,
हमने साकी को बुला फिर खुद को बहलाया है.

किस्मत को कोसू या खुद को कसूरवार कहूँ,
सोज़ ने मुझे बेरहम दिल हो कर सताया है.

इस वक्त और मेरे दरमियान काफी दूरी है,
कहा मैंने कभी मौजे ए महफ़िल को सजाया है.

कोई बता दे कैसे चेहरे की असलियत को छुपाते हैं



कोई बता दे कैसे चेहरे की असलियत को छुपाते हैं,
ज़माने वाले मेरे घावों को बार-बार छेड़ दुखाते हैं.

सुनने वालो मेरी लाचारी का अहसास समझो जरा,
अदावत का पता नहीं जाने क्यों लोग मुझे जलाते हैं.

ठोकरे इतनी खाई हैं की दिल में एक डर समाया है,
हम हर राह पर अब फूलों से भी खुद को बचाते हैं.

नहीं देखना अब मुझे सितारों से सजा गुलशिता भी,
इस दुनिया के हँसते हुये चेहरे जाने क्यों मुझे डराते है.

अपना तो एक ये गम ही सच्चा रहबर साबित हुआ,
हम इसी में अपनी सल्तनत के सुनहरे सपने सजाते हैं.

दर्द ही केवल आज तक मुझ से एक नगमा बना,
हम इसी को अक्सर ख्वाबों-ख्याली में गुनगुनाते हैं.

ये ख़ुशी जिसे इस ज़माने वाले यहाँ वहा ढूढ़ते,
हम इसी को अपने रास्ते से चुन चुन कर हटाते हैं.

मेरे बुरे वक्त के उस दौर में सदा रहा है जो मेरे साथ,
हम उन्ही खून के कतरों से इस बयाबान को भिगाते हैं.

तू कह दे गर तो हम हर साख पर तेरा नाम लिख आयेंगे


तू कह दे गर तो हम हर साख पर तेरा नाम लिख आयेंगे,
होता है ईश्क क्या हम दुनिया को इसका मतलब समझायेंगे.

ज़रूरत नहीं कोई यादगार बनाने की मुझे ए हमसफ़र,
याद करेगा ये ज़माना कुछ ऐसे जावेदा निशा छोड़ जायेंगे.

मेरे खून का कतरा-कतरा बह जायेगा तेरी ही तमन्ना में,
मर के भी जो न मरे हम रिश्तों की वो किताब लिख जायेंगे.

अपनी हर सदा में तेरी सरफरोशी का ज़ज्बा उतार दूंगा,
तेरी आरजू को हासिल कर मोहब्बत के गीत रोज़ गायेंगे.

क्या ज़रूरत फूलों की क्या ज़रूरत चाँद सितारों की हमे,
इस जहा को ईश्क की रूमानियत के अहसासों से सजायेंगे.

इस सफ़र में काँटों और ठोकरों का साया है तो क्या हुआ,
इस दर्द और सिकन को हम प्यार के ज़ज्बे से रूबरू करायेंगे.

उन दिनों जब तेरी मोहब्बत का तलबगार हुआ था



उन दिनों जब तेरी मोहब्बत का तलबगार हुआ था,
मै चाहतों के हसीन सिलसिलों से दो चार हुआ था.

मेरी जुबा पर उन दिनों बस एक नाम चढ़ा रहता,
दिल में मदहोशी का इक जूनून इख़्तियार हुआ था.

क्या बताये वक्त ए फ़साना उन बीते दिनों का दोस्तों,
मेरा दिल रातों को तड़पते हुये कैसे बेकरार हुआ था.

क्या कमाया क्या गवाया ये तो नहीं मालूम चला,
नजरों से मोहब्बत के शूलों का इक कारोबार हुआ था.

कहते है ज़माने वाले एक बर्बाद शायर हू मै ईश्क में,
ये दिल उसकी चाहत के आगोश में गिरिफ्तार हुआ था.

बया करू तो अहसासों की ये एक लम्बी कहानी है ,
बहारों से खिला-खिला हसरतों का गुलज़ार हुआ था,

बैठा हू तेरी नज़र के सामने तू पैमाने को भरता जा,
क्या बताये उस दौर में मुझे ए साकी प्यार हुआ था.