Tuesday, November 10, 2009

शायद किसी ने मुझे बुला लिया...


अपनी साँसों को उसकी साँस में उतार सकू,
उसके राहे-ए-गम से मै उसे पुकार सकू.
मुरझाये चेहरे को उसके मै निखार सकू,
गमों को मिटा हँसी को थोड़ा निहार सकू.

उनकी बातों से रुसवाई का अहसास किया,
उसने शायद बेवफा दुनिया पर विश्वास किया.
इश्क की राह के जख्मों ने उसे उदास किया,
कैसे कह दू मैंने भी बेवफाई का अहसास किया.

इश्क के आँसुओ को कहा किसने बहते देखा,
हँस दे दर्द में ऐसा किसको किसने सहते देखा.
हमने तो बहारों को भी एक दूसरे से कहते देखा,
हम नहीं जाती वहा जहा प्रेम लौ को जलते देखा.

उसके दर्द की कसक ने मेरी आँखों को रुला दिया,
बरसों बाद मेरे पत्थर दिल को पिघला दिया.
सुन उसकी दास्ता हमने भी अपना गम भूला लिया,
किस ने दी आवाज़, शायद फिर किसी ने मुझे बुला लिया.

3 comments:

  1. dard mein lipte sakoon ka adubhut sanyog

    aur kuchh kehna sambhav nahi

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  2. क्या बात है..रचनाओं में बहुत दर्द झलक रहा है...!पर है अच्छी!!!

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  3. हमने तो बहारों को भी एक दूसरे से कहते देखा,
    हम नहीं जाती वहा जहा प्रेम लौ को जलते देखा.....

    have no words so loving pain in this poem's every word realy nice thoughts.

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