Friday, November 27, 2009

जिंदगी मेरी कदम दर कदम एक शिकस्त है



जिंदगी मेरी कदम दर कदम एक शिकस्त है,
मिलू दोबारा बहारों से बस यही मेरी हसरत है.

दुनिया कैसे जी लेती है यू बेआबरू होकर,
देख इनकी पत्थरदिल आदत मुझे हैरत है.

दिन का उजाला मेरे लिए तो एक अँधेरा है,
जो कभी बनी नही कुछ ऐसी मेरी किस्मत है.

कहा से सोचों महफिलों की मौज के सपने,
अपना तो हर ख्याल जैसे एक रुखसत है.

जो नहीं था मुक्कदर में मेरे वो ना मिला,
मुझे ए खुदा तुझसे ना कभी शिकायत है.

मिट नहीं सकते कुछ ऐसे निशा बन गए,
इस दिल की दास्तान ताउम्र सलामत है.

ये दर्द ही मेरा दिलनशी बन गया अब तो,
दवा ना मिली तो शायरों सी मेरे तबीयत है.

1 comment:

  1. बहुत ही उम्दा और बेहतरीन जी ..शुभकामनाएं
    अजय कुमार झा

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