Wednesday, December 02, 2009

ज़माना कहता है ईश्क ना कर ये तो एक खता है


ज़माना कहता है ईश्क ना कर ये तो एक खता है,
इसका जो दर्द है वो जहा की महंगी एक सजा है.

पर क्या बताऊ एक नशा सा चढ़ा आपके साथ का,
मेरी प्यासी रूह ने इसी में पाया जन्नत सा मज़ा है.

मेरी हर बात में तेरे ही नाम की खुश्बू समा गयी ,
कौन दूसरा मेरे दिल के करीब अब तेरे सिवा है.

तेरी ही वफ़ा की उम्मीद इस काफ़िर के दिल में,
मेरे जीने की ए हमदम अब तू ही तो एक दवा है.

कितनी दफा मैं मरा मुझे ना इसका पता लगा,
तेरे ही ईश्क के किस्से अब कुछ ऐसी मेरी अदा है.

मेरी रूह में जो बस गया वो साया तेरी ही सूरत का,
नहीं लगता अब मुझे खफा मुझ से मेरा खुदा है.

तेरी दुआ का है असर चेहरे पे जो हँसी झलक रही,
हो जाऊ फ़ना अपनी चाहत पे यही आखिरी रजा है.

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