Thursday, October 29, 2009

उससे पूछना मेरी आखरी निशानी..


दिल के ज़ख्मों को किसी की नजरों का दीदार कराऊ ,
मै क्यों अपनी कहानी का चर्चा महफ़िल में सरेआम कराऊ.
मेरी रूह की प्यास है कितनी प्यासी और अनबुझी,
किसी को इसका तड़पता अहसास क्यों कराऊ.

मेरे दर्द का असर कितना मैंने किया बीते दौर में सहन,
क्यों अपने जिगर के दर्द के निशान खुलेआम दिखाऊ.
मेरे दर्द के असलियत के सबूत सबको वाकिफ कराऊ,
जो बीता है गुज़रे दौर में मेरे साथ वो किस्सा क्यों बताऊ.

एक परछाई को लगाया था गले, उसका रंग कैसे समझाऊ,
मै अपने गमो की टूटी सहनाई, कहा से लाऊ.
आज भी जिंदा है जो राज़ उनको कैसे दफनाऊ,
सुनना चाहते हो जो तुम दास्ता कहा से वो आवाज़ लाऊ.

इश्क के धोखे से रूबरू करा गयी मुझे,
उस से पूछो कहा मिलेगी बेवफा वो हसीं तुझे.
बेवफाई के आयतों से वाकिफ है वो बीती कहानी,
हो सके तो कोशिश करो पढने की मेरी आखरी निशानी.

1 comment:

  1. दिल के ज़ख्मों को किसी की नजरों का दीदार कराऊ ,
    मै क्यों अपनी कहानी का चर्चा महफ़िल में सरेआम कराऊ.
    मेरी रूह की प्यास है कितनी प्यासी और अनबुझी,
    किसी को इसका तड़पता अहसास क्यों कराऊ.....waah lucky ji bahut khoob likha hai aapne ..sabhi najme padhkar bahut acccha laga har najm ko bahut hi gerhrai k saath likha hai apne ..hatts off ...likhte rahiye
    best wishes

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