Sunday, December 06, 2009

हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती


हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती,
मेरी हर रात तेरे ही नाम का आलाप कर ढलती.

कहीं और नहीं मिलता सुकून तेरे चेहरे के सिवा,
ईश्क की आग मेरे दिल में धीरे-धीरे सुलगती.

क्या बयां करू मैं अहसासों की दास्ता-ए-कहानी,
हर बात में ज़िक्र तेरा एक ही आवाज़ निकलती.

तेरी अदा सबसे जुदा लगती है जाने क्यों मुझे,
मेरे मन की हर सोच तेरे ही दीदार को मचलती.

आँखों में तेरा ही चेहरा दिल में तेरी ही है यादें,
मेरे जिगर में एक हसी तस्वीर तेरी ही सवरती.

किस मोड़ पर जाने जिंदगानी गुज़र रही मेरी,
हर रात उसके ही ख्यालों के साथ अब निकलती.

1 comment:

  1. luky ji pehle aap ye bataye aap pic kahan se khojte hai itni sateek i mean badhiya ...adha haal to pic hi bayan kar deti or pic ko dekh kar hi poetry ko padhne ki utsukta badh jati hai ....hehehhe...nyways bahut sunder rachna ese hi likhte rahiye ...shubhkamnay

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