Saturday, December 05, 2009

मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना


मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना,
फिर आज जल गया ईश्क की आग में एक दीवाना.

ए मालिक मेरे तुने क्या कहानी लिख दी मेरी ये,
जिसे मैं हर गजल में बोलू बना दिया ऐसा अफसाना.

उसके ख्यालों की बातें करने लगा हूँ अब तो रोज़,
नहीं बची कोई नज़्म और चाहूँ जिसे अब गुनगुनाना.

लगने लगा खुद को खुद से दूर कर रहा हू जैसे मैं,
वक्त ए दौर देखो हो गया अपने दोस्तों से भी बेगाना.

मेरी नफस में उसके ही नाम का बसेरा है अब तो,
जाने क्यों चाहू उसकी याद में खुद को अब जलाना.

कब सहर हुयी जाने कब गुजरती हुयी सब बीत गयी,
नहीं याद कुछ देखो मेरे नशे को बन गया मैं परवाना.

ए मालिक सदा में तेरी ही बंदगी के गीत रहे है मेरे,
यकीं तुझ पर मंजिल को मेरी बस तू फूलों से सजाना.

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