तेरे शहर की हवा मुझे कुछ बेगानी लगी,
यहाँ हर साख मुझे ईश्क से अनजानी लगी.
हर नज़र में है कशिश, हर रूह है प्यासी,
ऐसी यहाँ की तड़पती हर जवानी लगी.
हम तो टूटे दिल को लिए फिरते है गलियों में,
हर मोड़ पर इंतजार करती नयी कहानी लगी.
मेरी प्यास का आलम ये शहर क्या जाने,
ईश्क के है नए राही, ऐसी इनकी निशानी लगी.
तेरे ज़ख्म कही फिर न हो जाये हरे बदनसीब,
देख इस वक्त का फ़साना मुझे हैरानी लगी.
bahut khoob lucky
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना । आभार
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें............
behad sunder najm hai .....sabhi najme ek se bahdkar ek hai ,,aap ese hi likhte rahe ek sacchi or bahut acchi soch k sath ...bahut bahut shubkamnaye
ReplyDeleteso nice dear....
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