लगी एक ठोकर गिर गया वो शख्स,
रोकने की कोशिश, बह गए उसके अक्स.
जिंदगी को भूल चला था राह, उन दिनों,
मिले एसे घाव, संभलने में लगे महिनों.
गुज़रा उसका वक्त, समझने लगा ये दुनिया,
मिल ही गया उसे सच्चाई का बेरहम आईना.
अब दोबारा चला है वो मंजिल के फतेह का सफ़र,
पर अब नहीं है उसका कोई हमराही, हमसफ़र.
काँटों की राह पे चलके, सिखा है चलना,
वो चाहता नहीं दोबारा गमों से मिलना.
जीना हर लम्हें को उसका है मकसद,
अब पसंद नहीं और दुखों की उसे दस्तक.
gud dost nice poem again.. keep it up ..
ReplyDeleteheart touching friend... nice... keep it up yar...
ReplyDeletegud yar i like it.. bahut khub..
ReplyDeletegud bro..
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