दो राहे सा विभक्त सबका स्वाभिमान,
उन्नति के शिखर पर असत्य की दुकान.
आमजन के नयनों में लहू निशान,
कैसे कहूँ में तुझे ए मेरे वतन महान.
यूँ तो हो जाऊ बलिदान तेरी चाह में सीना तान,
मिटा दूँ तेरे कण-कण के लिए अपनी शान.
पर दुःख मुझे तू रोता है यहाँ हर प्रातः शाम,
स्वपन थे जो तेरे बिक गए कोड़ियों के दाम.
क्या दृश्य है, वीरों की राह आज सुनसान,
मालिक मेरे कर रहम दे दें इन्हें कोई वरदान.
वो घर से दूर सीमा पर लड़ रहा जवान,
मुठी भर जन चला रहे वतन, बिक राह देश का मान.
आँखें नहीं करती यकीं क्यों बने हो अज्ञान,
लहू नहीं शहीदों का तुझमें ए जवान.
उठ हो खड़ा, जाग तू कहा है ध्यान,
वतन के लिए कुछ नया अब तू कर जवान.
अभी तक कहते हैं, पर असलियत में बना इसे महान,
राष्ट्र के पुनर्निर्माण पर आज तू लूटा अपनी जान.
पुनः जन्म लेगा वो देशभक्ति का स्वाभिमान,
वतन की खुशहाली पर आज हम फिर देंगे अपनी जान.
तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो
14 years ago
bahut sunder lucky ji.... bahut joshili kavita hai..
ReplyDeletebahut achha laga pagdhkar ....