Sunday, January 10, 2010

दो राहे सा विभक्त सबका स्वाभिमान

दो राहे सा विभक्त सबका स्वाभिमान,
उन्नति के शिखर पर असत्य की दुकान.
आमजन के नयनों में लहू निशान,
कैसे कहूँ में तुझे ए मेरे वतन महान.

यूँ तो हो जाऊ बलिदान तेरी चाह में सीना तान,
मिटा दूँ तेरे कण-कण के लिए अपनी शान.
पर दुःख मुझे तू रोता है यहाँ हर प्रातः शाम,
स्वपन थे जो तेरे बिक गए कोड़ियों के दाम.

क्या दृश्य है, वीरों की राह आज सुनसान,
मालिक मेरे कर रहम दे दें इन्हें कोई वरदान.
वो घर से दूर सीमा पर लड़ रहा जवान,
मुठी भर जन चला रहे वतन, बिक राह देश का मान.

आँखें नहीं करती यकीं क्यों बने हो अज्ञान,
लहू नहीं शहीदों का तुझमें ए जवान.
उठ हो खड़ा, जाग तू कहा है ध्यान,
वतन के लिए कुछ नया अब तू कर जवान.

अभी तक कहते हैं, पर असलियत में बना इसे महान,
राष्ट्र के पुनर्निर्माण पर आज तू लूटा अपनी जान.
पुनः जन्म लेगा वो देशभक्ति का स्वाभिमान,
वतन की खुशहाली पर आज हम फिर देंगे अपनी जान.

Sunday, December 20, 2009

जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना



जो तेरी बातों की खुश्बू बयां ना कर सके, उस कलम से क्या करना,
जुदा होकर दिल जिसे भूल जाये मेरा, मुझे उस कसम से क्या करना.

तेरी यादें ही मेरी अनमोल दौलत, चाहे आँसुओ का ये ठिकाना हो,
जमा किया खुशियों का खजाना, अब मुझे और रकम से क्या करना.

आंसू बहते नहीं, शायद आँखों से इनका नामों-ओ-निशा मिट गया,
ज़माने वालों दो धोखा दो दर्द, अब मुझे और सितम से क्या करना.

कभी सपनों में मिलू, तो उसके यहाँ होने का धोखा होता है मुझे,
ए खुदा हो सके तो तू भी सता ले, अब मुझे और बहम से क्या करना.

जाने क्यों अब जीने की तम्मना मर गयी है मेरी, पता नहीं दोस्तों,
बेआबरू हुआ इस महफ़िल में, अब मुझे और शरम से क्या करना.

ईश्क का अहसास किया हमने, ईश्क में खुद को बर्बाद किया हमने,
जलने वाला दे गया बहुत यादें, मुझे इक और सनम से क्या करना.

Sunday, December 06, 2009

हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती


हर साख में तेरी ही सूरत की परछाई है दिखती,
मेरी हर रात तेरे ही नाम का आलाप कर ढलती.

कहीं और नहीं मिलता सुकून तेरे चेहरे के सिवा,
ईश्क की आग मेरे दिल में धीरे-धीरे सुलगती.

क्या बयां करू मैं अहसासों की दास्ता-ए-कहानी,
हर बात में ज़िक्र तेरा एक ही आवाज़ निकलती.

तेरी अदा सबसे जुदा लगती है जाने क्यों मुझे,
मेरे मन की हर सोच तेरे ही दीदार को मचलती.

आँखों में तेरा ही चेहरा दिल में तेरी ही है यादें,
मेरे जिगर में एक हसी तस्वीर तेरी ही सवरती.

किस मोड़ पर जाने जिंदगानी गुज़र रही मेरी,
हर रात उसके ही ख्यालों के साथ अब निकलती.

Saturday, December 05, 2009

मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना


मिलकर जाने क्या हुआ हो गया दिल मेरा शायराना,
फिर आज जल गया ईश्क की आग में एक दीवाना.

ए मालिक मेरे तुने क्या कहानी लिख दी मेरी ये,
जिसे मैं हर गजल में बोलू बना दिया ऐसा अफसाना.

उसके ख्यालों की बातें करने लगा हूँ अब तो रोज़,
नहीं बची कोई नज़्म और चाहूँ जिसे अब गुनगुनाना.

लगने लगा खुद को खुद से दूर कर रहा हू जैसे मैं,
वक्त ए दौर देखो हो गया अपने दोस्तों से भी बेगाना.

मेरी नफस में उसके ही नाम का बसेरा है अब तो,
जाने क्यों चाहू उसकी याद में खुद को अब जलाना.

कब सहर हुयी जाने कब गुजरती हुयी सब बीत गयी,
नहीं याद कुछ देखो मेरे नशे को बन गया मैं परवाना.

ए मालिक सदा में तेरी ही बंदगी के गीत रहे है मेरे,
यकीं तुझ पर मंजिल को मेरी बस तू फूलों से सजाना.

मेरी ख्यालो में मत खोना हसेंगे तुझ पर ज़माने वाले


मेरी ख्यालो में मत खोना हसेंगे तुझ पर ज़माने वाले,
आग जो लग रही नहीं मिलेंगे कहीं उसे बुझाने वाले.

कहते है ईश्क किया नहीं जाता ये तो बस हो जाता है,
नज़रे सब बयां कर गयी तुझे क्या पता ए छुपाने वाले.

लोग कहते है तू कुछ बदली-बदली रहती है आजकल,
नहीं पता क्या होगा तेरा मुझे आँखों में बसाने वाले.

अब तुझे होने लगा है असर ईश्क के नशे का शायद,
मत सोच इतना मेरे ही ख्वाबों को मन में सजाने वाले.

कभी किसी की नजर ना लगे तेरी भोली सूरत को,
हर मोड़ पर बैठे है घाव देकर दिल को दुखाने वाले.

मेरे सपनों की कीमत को कभी कम मत समझना,
बहुत मिलेंगे तुझे तेरे ईश्क की चाह लेकर आने वाले.

तुझे नहीं पता तेरा नया नया आगाजें ए ईश्क है ये,
सांसे मागेंगी केवल मेरा साथ मुझे सताकर जाने वाले.

Friday, December 04, 2009

एक तेरा ही चेहरा जो छाया है मेरे ख्वाबों में


एक तेरा ही चेहरा जो छाया है मेरे ख्वाबों में,
नज़र आये तू ही तू मुझे अब मेरी किताबों में.

ज़माने के दौर बदले यारों मेरा भी वक्त बदला,
तेरा ही दीदार ईश्क के मैखाने की शराबों में.

बाते करू अपने मालिक से अब तो तेरी ही,
तेरे ही नाम का इज़हार मेरे सब जवाबों में.

ज़रा बता दे मुझे क्या देखू क्या ना देखू,
तू ही तू नज़र आये इस बहार के सबाबो में.

कर दिया गुनाह हम भी ईश्क के मरीज़ बने,
करने लगा अपनी गिनती मै भी अब खराबों में.

Thursday, December 03, 2009

क्या बताये खुदा ने मुझे कैसा ईनाम दिया है



क्या बताये खुदा ने मुझे कैसा ईनाम दिया है,
तुमसे मिला कर पूरा जन्नत का अरमान किया है.

तस्सवुर की गिरानी तस्वीर थी जो दिल में,
खुदा ने उसको थमा खुशियों को अंजाम दिया है.

कैसा दौर ए वक्त आ गया मैं बहकने लगा हूँ,
उसके ईश्क पे खुद को फ़ना हर शाम किया है.

उसके लबों से निकली दिल को छू गयी हर सदा,
क्या बताये उसने दिल को कैसा आराम दिया है.

बरसने लगे बादल पर नहीं मौसम सावन का,
दिल की लगी ने आज फिर काम तमाम किया है.

अदा क्या बया करू जन्नत की सहजादी वो,
उसकी फिजा को देख दिलरुबा उसे नाम दिया है.